SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 466 जनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश / द्वारा संभव मालूम नहीं होता, बल्कि कुमारने ही जान या अनजानमें जोइन्दुके दोहेका अनुसरण किया है ऐसा जान पड़ना है / उक्न दोहा और गाथा इस प्रकार है : विरलाजारणहिं तत्तु बहु विरला णिमुगणहि तत्तु / विरला झायहि तत्तु जिय विरला धारहि तनु / / 6 / / -योगमार विरला णिमुणहि तब विरला जागणनि नबदी तक। विरला भावहि तब विरलागण धारणा रादि // 3 // -कानियानुप्रसा और इसलिये ऐसी स्थितिम . माहसका यह मत है कि कानिकयानुप्रेक्षा उबत कुन्नकुन्दादिके बाद की ही नही बल्कि परमात्मप्रकास तथा योगसारके का योगेन्दु प्राचार्य के भी बादकी बनी हुई है, जिसका समय उन्होंने पूज्यपादके ममाधिनत्रमे वादका और चारव्याकरण पूर्वका प्रधान ईसा की त्री प्रोर वी शताब्दी के मध्यका निर्धारित किया है. क्योंकि परमात्मप्रकाशमें ममाधितंत्रका बहुत कुछ अनुमण किया गया है, प्रौर चषध्याकरणमे परमात्मप्रकागके प्रथम अधिकारका ८५वा दाहा ( कान नहावरण जोडया' इत्यादि ) उदाहरण के रूपमें उदत है। इममें गन्देह नहीं कि मूलाचार. भगवती प्रागधना और वारगयामामें बारह भावनापीका कर एक है. हना ही नही बल्कि दन भावनापाक नाम नया क्रमकी प्रतिपादकगाया भी एक ही है और यह एक खास विशेषता है ! गाथा तथा उसमें अगित भावनामोंके कमकी भपिक. प्राचीनताको मना करनी है। वह गाथा इस प्रकार है अधुवमसरण गत्तम-मंमार लांगममुगिन / श्रामय संवर गिजर धम्म याहि व विनिते)ो / परमात्मप्रकाशको पनी प्रस्तावना पृ. ६४-६५प्रतावना: हिन्दीमार 011-115 /
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy