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________________ 464 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश "सामिकार्तिकेयमुनि-क्रौं चराज-कृतोपसर्ग सोढ्या साम्यपरिणामेन समाधिमरणेन देवलोकं प्राप्यः (प्तः?)।" इसमें लिखा है कि 'स्वामीकानिकेय मुनि क्रौचराजकृत उपसर्गको समभाव से महकर समाधिपूर्वक मरणके द्वारा देवलोक को प्राप्त हुए।' नत्वार्थ राजवातिकादि ग्रंथोंमें 'अनुतगेपपाददागांग' का वर्णन करते हुए वढं मान तीर्थकरके तीर्थ में दारूण उपमोको महकर विजयादिक पनुनर विमानों (देवलोक) मे उत्पन्न होनेवाले दम पनगार-माधुग्रोके नाम दिये है. उनमें कार्तिक अथवा कानिकेयका भी एक नाम है: परन्तु किसके द्वारा वे उपमगंको प्राप्त हुए ऐसा कुछ उल्नेम्व मायमें नही है। हां, भगवती प्राराधना जैसे प्राचीन ग्रन्थकी निम्नगाया नं. 1586 में क्रौचके द्वारा उपमर्गको प्राप्त हुए एक व्यक्तिका उल्लेख जार है - माथमे उपमगम्थान गरडक' और 'शक्ति' हथियारका भी उस है ---परन्तु कानिकेय नामका स्पष्ट उल्लेख नहीं है / उस व्यक्तिको मात्र 'अग्निदयित.' लिम्बा है, जिसका प्रथं होता, अग्निप्रिय, अग्निमा प्रेमी अथवा प्रग्निता 'याग-प्रमात्र - रोहयम्मि मत्ती होकाचा अग्गियनो वि / नं वडामधियामिय पडिया उत्तम अg // गुलागमनादांगा' टाकाम नपाशाधजीने 'गियो' (अग्निदयिन ) पदका अर्थ. 'अग्नि राजनानो गनः परः कानिक यमन:-अग्निनाम के गजामा 15 कातिन यमजा--दिया है / कानिकग मुनिकी एक कथा भी हग्गि . श्रीचन्द्र मोर नमिदनके कथाको पाई जाती है और उसमें कानिकयको कृतिका मानामे जान अग्निगजामा पत्र बनाया है। माय ही. यह भी लिखा है कि कनियनं राजकान मेंमागवम्याम-झी मुनिटीना ली थी. जिसका प्रमुक कारण था, मोर कारिकपको वान गो१ नगाके रम को बगनाको ही पी लिगको शनि मारत होकर पवा जिसके कियादाण उमगंगे मीनार कानिकर देवनांक मित्रार। म काक पात्र कालिकय प्रौर भगवती प्रागमनाको उक्त गापा पात्र 'अग्निपत्र
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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