________________ 488 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश पौर इसलिये टीकाकारने टीकाको अपने नामालित किया है, यह बात स्पष्ट होजाती है / स्वयं 'विजयोदया' के एक स्थल परसे यह भी जान पड़ता है कि अपराजितसूरिने दशवकालिक सूत्रपर भी कोई टीका लिम्वी है और उसका भी नाम अपने नामानुकूल 'विजयोदया' दिया है / यथा: "दशवकालिकटीकायां श्रीविजयोदयायां प्रपंचिता उद्गमादिदोषा इति नेह प्रतन्यते।" -'उग्गमउपायगादि' गाथा नं. 1167 अर्थात्-दशवकालिकको 'श्रीविजयोदया' नामकी टीकामें उद्गमादि दोषोंका विस्तारके माथ वर्णन किया गया है, इमीमे यहां पर उनका विस्तृत कथन नहीं किया जाता। __ हां, मूलाराधना-दपंगण परमे यह मालूम नहीं हो सका कि प्राकृतटीकाके रचयिता को प्राचार्य हा है - पागाधरणीने उनका नाम मायमें नहीं दिया / शायद एक ही प्राकृतटीका होनेके कारण उमके रचयिताका नाम देनेको जमरत न मममी गई हो। परन्तु कुछ भी हो, इतना स्पष्ट है कि 50 प्रागाधरजीने प्राकृतटीकाके रचपिनाक विषयमें अपने पाठकों को अंधोमे रक्वा है / दोनों टिप्पणियों के कर्नापोंका नाम उहोंने फका दिया है, जिनमेगे एक है 'जयनन्दी और दूसरे 'श्री चन्द्र / श्रीचन्द्राचार्य के दूसरे टिपण प्रसिद्ध है-एक पुष्पदनकविके प्राकृत उतरणका ferm है और दूमग विषेणके पपग्निका / पहना टिपण वि. म. 1080 में पोर मग वि० मं. 108, में बनकर ममात हा है। भगवती प्रागपनाका टिणण भी मंभवत: + "श्रीविक्रमादिन्यमनपरे वर्षाणामधीत्यधिकमही महापगण-विषम पदविवरण मागरमेनमंडलायरिजाय मूनटिपण बालोश्य कृतमिद ममुच्चय - टिपणं प्रपातभीतेन श्रीमहलाकारगरणधीनन्यायाय-मत्कविशिष्येण श्रीम.द. मुनिना, निजदोर्दशभिभूनारपुराग्यविजयिनः श्री मोबदेवम्य (र ज्ये)|१०२।। इति उत्तरपुराणटिप्पणकम " ! "बनाकारगण श्रीश्रीनन्यायाधमाकविशिष्येण धीचन्द्रमुनिना, श्रीमतिकमादित्यसंवत्मरे सप्ताशीत्यषिकवर्षसह श्रीमदागया श्रीमनो राज्यभोजदयम्य पपरिते / इति पपपरिमे 123........... !"