________________ 25 भ० आराधनाकी दमरी प्राचीन टीका-टिप्पणियाँ 'भगवती पाराधना पोर उमकी टीका' नामका एक विस्तृत लेख 'अनेकान के प्रथम वर्षकी किरण:. 8 में प्रकाशित हना था। उसम मुहार पं० नाथूगमजी प्रेमीनं शिवाचाय-प्रगान "भगवनी अाराधना' नामक महान् अन्यकी चार मम्मत टीकापाका परिनय दिया था-१ अपगजितमूरिकी 'विजयादया' : पं. प्रामाधी मूलागवना-दांगग', प्रजातकर्तृका 'पागधनापजका पोर 4 50 मिव जीलानको भावार्थ-दीपिका' टीका / प. सदामुम्ब जीकी भाषावनिका के अतिरिक्त उभ वक्त तक ही चार टोका पोका पता चला था / हालमं मूलागधना-दांगको देखने हा मुझे इस ग्रन्थी कुछ दूरी प्राचीन टीका-टिप्पणियांका भी पता चला है और यह मालुम हमा है कि इस ग्रन्थ पर दो मस्कृत टिपग के मनिक प्रावन भापानी भी एक टीका थी, जिमकहानकी बहन बडी सम्भावना थी. क्योकि मनग्राय अधिक प्राचीन है। माय ही, यह भी पार हो गया कि प्रागजिनमुग्मिी टीकाका नाम विजयोदया' ही है जैसा कि मेने परन सम्पादकीय नोट में मुचित किया था निनयो. दया नही, जिम के होने पर प्रेमी जाने जार दिया था। करिशेष बात भोर भी ज्ञान हई है और वह यह कि अपराजिसमृरिका दमग नाम "विजय पवा श्रीविजय था। 50 प्रासापर जीने जगह-जगह उन्हें श्रीविषयाचायं के नाम उम्बिन किया है और प्राय इमी नामके माथ उनकी उक्त सस्कृत टीकाक वाक्यों को मतभेदादिक प्रदर्शनम्पमें उदधृत किया है प्रपया फिमी मायाको प्रमान्यनादि-विषयमे उनके इस नामको पेश किया है। देखो. 'अनेकान्त, 'प्रथम वर्ष, किरण 4 पृ० 210