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________________ - ~ 486 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश रिणयां लिखी गई है मनुवाद भी हुए हैं और वे सब ग्रंथकी ख्याति, उपयोगिता, प्रचार और महताके योतक है। प्राकृतकी टीका-टिप्परिणयां यद्यपि प्राज उपलब्ध नहीं है, परन्तु संस्कृत टीकामों में उनके स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध होते है / और वे ग्रंथकी प्राचीनताको मविशेषरूपसे मूचित करते है। जयनन्दी पौर श्रीचन्द्रके दो टिप्पण मोर एक अज्ञातनाम विद्वानका पद्यानुवाद भी अभी तक उपलब्ध नहीं हुए, जिनका पं० पागाधरको टीका में उल्लेख है / भोर भी कुछ टीका-टिप्पणियाँ अनुपलब्ध है। उपलब्ध टीकाप्रीम मभवत: विक्रमकी 8 वी शताब्दीके विद्वान प्राचार्य अपराजितमूरिकी विजयोदया' टीका, १३वी शताब्दी के विद्वान् पं० पागाधरको 'मूलाराधनादांग' नामकी टोका पोर 11 वीं शताब्दीके विद्वान् प्रमितगतिको पद्यानुवाद पर 'मंस्कृत प्रागधना' ये तीनों कनियां एक साथ न हिन्दी टीका महित र हो चुकी है। प. सदामुम्बजीकी हिन्दी टीका इनमें भी पहले दिन है ! और 'माराधनापत्रिका' नया निवजोलानकन 'भावार्थदीपिका' टीका ! पूना के भण्डारकर प्राच्य विद्या- मशाधक मदिरमें कई जानी है, मा. नाथूरामजी प्रेमीने प्रपन लेम्बो मे मचित किया है।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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