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________________ भगवती आराधना 485 ग्रंथ जनसमाजमें उपलब्ध नहीं है / अपने विषयका प्रसाधारण मूलग्रंथ होनस जनसमाजमें यह खूब ख्यातिको प्राप्त हुआ है। इसकी गाथासंख्या सत्र मिलाकर 2170 है, जिनमें 5 गाथाए 'उक्त च' प्रादि रूपमे दी हई है। भगवती प्राराधनाके कर्ना शिवायं प्रपत्रा शिवकोटि नामके प्राचार्य है, जिन्हों. ने अन्यके अन्तमें प्रायजिननन्दिगरणी मवंगुप्त गर्ग और प्रार्थमित्रनन्दिका अपने विद्या अथवा शिक्षा-गुरुके रूपमें हम प्रकारसे उल्लेख किया है कि उनके पादमूल में बैठकर सम्म मूत्र और उसके प्रयंको प्रथवा मूत्र और अर्थ की भने प्रकार जानकारी प्राम कीगई और पूर्वाचायं अथवा प्राचार्यों के द्वारा निबद्ध हुई प्रागघनानोका उपयोग करके यह माराधना स्वशक्ति के अनुमार रची गई है। माथ ही, अपनंको 'पागि-दल-भोजी' (करपात्र. माहारी) लिखकर श्वेताम्बर सम्प्रदायमे भिन्न दिगम्बर मम्प्रदायका प्राचार्य मूचित किया है। इसके मिवाय, उन्होंने यह भी निवेदन किया है, कि छयस्थता (जानकी प्रपूर्णता) के कारण मुझमे कही कृष्ट प्रवचन (भागम) के विरुद्ध निबद्ध हो गया हो तो उसे मुगीतार्थ (मागमजान में निपुग्णा) साधु प्रवचनवत्मलताकी प्टिस गुट कर मेवे ! और यह भावना भी की है कि मनिमे वर्णन को हुई यह भगवनी पाराधना मपको नया (मुझ) शिवरायंको उनम समाधि-वर प्रदान करे-इम के प्रमादम मग तथा मघक मभी प्राणियोंका ममाधिपूर्वक मरण हो / हम पंचपर मम्कन, पान और हिन्दी प्रादिकी कितनी ही टीका-टिप * प्रगजिगणदिग:ग-मनगुनगग्गि-प्रग्नमित्तगण दीरगं / प्रवर्गामय पादमूरे सम्म मुन च प्रत्य न / 21:5 // पूबायरियग्गिवडा उपजीविताइमा ममनोर। पागहणा मिवाजेगा पारिणदालभाडगा रहा / / 2166 / / प्रदुमावदाए सस्पद जंबई होज पत्रण-दिष्टं / मोषनु मुगीदत्या वयग. वचनलदाए दु॥ 2167 // पाराहणा भगवदी एवं धर्म.ए वरिषदा मती। संघस्स सिवरजस्म य ममाहिवरमुत्तमं दे3 // 2168 //
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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