________________ 24 भगवती आराधना यह मम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और मम्यक नपरूप चार प्रा. धनामों पर, जो मुक्तिको प्रास कगनेवाली है, एक बड़ा ही अधिकारपूर्ण प्राचीन ग्रन्य है. जनसमाजमें सवंत्र प्रसिद्ध है और प्राय: निधर्मसे सम्बन्ध रखता है। धर्ममें समाधिपूर्वक मग्ग की मगिरि विशेषता है-मुनि हो या धावक मसका लक्ष्य उसकी पोर रहता है, निन्यकी प्रार्थना उमके लिये भावना को जाती है और उसकी मफलतापर जीवनको सफलतातया मुन्दर भविष्यको प्राशा निर्भर रहती है / इस ग्रन्थारसे ममाविंक मरगणकी पर्याप्त शिक्षामामग्री तथा व्यवस्था मिलती है-माग ग्रंथ मरमा के भेद-प्रभेदों और तत्सम्ब. न्धी शिक्षाओं नया व्यवस्थापोंसे भरा हुपा है। इसमें मरगा के मुख्य पान में किये है-१ पंडितांडित, 2 पनि 3 बालपान, 4 बाल पोर 5 गल-बाल / इनमें पहले तीन प्रगस्त और शेष अप्रगत है। बाल-बालमरण मिध्या जीबोका, बालगरा प्रधिरत-मम्परिटयों का. बालपरितमण विरतातिर (देशवतीधावकोंका,पण्डितमरण म कलम पमी मापोका पोर पनि पण्डिनमा ! क्षीणकपाय के गलियोंका होना है। मायही. परिनमरण ? भलमन्यास अङ्गिनी और 3 प्रायोपगमन से तीन भेकरके भन्यायानक सतना। भक्त-प्रग्याम्यान पोर प्रविचार मठ-प्रत्याभ्यान ऐसे दो भव किये है पोरकर मविचारमतरयास्यानका 'हं' दिवालीम प्रधिका विस्तारक ग वर्णन किया है। तदनन्तर पशिधार मतप्रयाम्यान. धिनी, प्रायोगगमनमा बामपरितमरण पोर परिस परितमरणका मक्षेपम: निपण किया है। विषयक इतने अधिक विस्तृत और म्यवस्थित विपनको लिए हम मराभ