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________________ 470 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश योग-साधना करता हुआ ध्यानमग्न हो और उस समय किसीने उसको वस्त्र प्रोढा दिया हो, जिसे वह अपने लिये उपसर्ग समझता है। सामायिकमें स्थित वस्त्रसहित गृहस्थको उस मुनिकी उपमा देते हुए उसे जो यतिभाव-योगीके भावको प्राप्त हुप्रा लिखा है और अगले पद्यमें उसे 'प्रचलयोग' भी बतलाया है उससे स्पष्ट जाना जाता है कि रत्नकरण्डमें भी योगीके लिये 'यति' शब्दका प्रयोग किया गया है / इसके सिवाय, प्रफलंकदेवने अष्टशती ( देवागम-भाष्य )के मंगल-पद्यमें प्राप्तमीमांसाकार स्वामी समन्तभद्रको 'यति' लिखा है जो सन्मार्गमें यत्नशील अथवा मन-वचन-कायके नियन्त्रगणरूप योगकी साधनामें तत्पर योगीका वाचक है, और श्रीविद्यानन्दाचार्यने अपनी अष्ट-सहस्रीमें उन्हें 'यतिभून' और 'यतीश' तक लिखा है, जो दोनों ही 'योगिराज' अथवा 'योगीन्द्र' अर्थ. के द्योतक है, और 'यतीश' के साथ 'प्रथिततर' विशेषण लगाकर तो यह भी मुचित किया गया है कि वे एक बहुत बड़े प्रसिद्ध योगिराज थे। ऐसे ही उल्लेखोंको दृष्टिमें रखकर वादिराजने उक्त पद्यमें ममन्तभद्रके लिये 'योगीन्द्र' विशेषणका प्रयोग किया जान पड़ता है। और इमलिये यह कहना कि 'समन्तभद्र योगी नही थे अथवा योगीरूपसे उनका कही उल्लेख नहीं किसी तरह भी समुचिन नही कहा जा सकता / रत्नकरण्डकी अब तक ऐमी कोई प्राचीन प्रति भी प्रो. साहबकी तरफसे उपस्थित नहीं की गई जिसमें ग्रन्थकर्ता 'योगीन्द्र'को नामका कोई विद्वान् लिखा हो अथवा म्वामी ममन्तभद्रमे भिन्न दूसरा कोई ममन्तभद्र उसका कर्ता है ऐसी स्पष्ट मूचना माथमे की गई हो। ममन्तभद्र नामके दुमरे छह विद्वानोंकी खोज करके मैने उसे रत्नकरण्डश्रावकाचारकी अपनी प्रस्तावनामें पाजमे कोई 23 वर्ष पहले प्रकट किया थाउसके बादसे और किसी समन्तभद्रका अब तक कोई पता नहीं चला। उनमें से एक 'लुघु', दूसरे 'चिक्क', तीसरे 'गेम्मोप्पे', चौथे 'अभिनव', पांचवें 'भट्टारक', छठे गृहस्थ विशेषणसे विशिष्ट पाये जाते हैं। उनमेंसे कोई भी अपने समयादिक 8 "येनाचार्य-समन्तभद्र-यतिना तस्मै नमः संततम् / " * "स श्रीस्वामिसमन्तभद्र-यतिभृद्-भूयादिभुर्भानुमान् / " "स्वामी जीयात्स शवरत्प्रथिततरयतीशोऽकल बोरुकीतिः।"
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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