________________ 466 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश द्वारा शब्दोंका सिद्ध होना भी कोई प्रसंगत नहीं है / वे पूज्यपादसे भी अधिक महान् थे, प्रकलंक और विद्यानन्दादिक बड़े-बड़े प्राचार्योंने उनकी महानताका खुला गान किया है, उन्हें सर्वपदार्थतत्त्वविषयक स्याद्वाद-तीर्थको कलिकालमें भी प्रभावित करनेवाला, और वीरशासनकी हजारगुणी वृद्धि करनेवाला, 'जनशासनका प्रणेता' तक लिखा है। उनके असाधारण गुणोंके कीर्तनों औरमहिमाअोंके वर्णनोंसे जनसाहित्य भरा हुआ है, जिसका कुछ परिचय पाठक 'सत्साधु स्मरण-मंगलपाठ' में दिये हुए समन्तभद्रके स्मरणोंपरसे सहजमेंही प्राप्त कर सकते हैं। समन्तभद्रके एक परिचय-पद्यसे मालूम होता है कि वे 'सिद्धसारस्वत थे-सरस्वती उन्हें सिद्ध थी; वादी सह जैसे प्राचार्य उन्हें 'सरस्वतीकी स्वच्छन्द-विहारभूमि' बतलाते हैं और एक दूसरे ग्रन्धकार समन्तभद्र-द्वारा रचे हए ग्रन्थममूहरूपी निर्मलकमल-सरोवरमें,जो भावरूप हमोंमे परिपूर्ण है, सरस्वतीको क्रीडा करती हुई उल्लेखित करते हैं * / इससे समन्तभद्र के द्वारा शब्दोंका सिद्ध होना कोई अनोखी बात नही कही जा मकती। उनका 'जिनशतक' * उनके अपूर्व व्याकरण पाण्डित्य और शब्दोंके एकाधिपत्यको सूचित करता है। पूज्यपादने तो अपने जैनेन्द्रव्याकरण मे 'चतुष्टयं समन्तभद्रस्य' यह सूत्र रखकर समन्तभद्र-द्वारा होनेवाली शब्दसिद्धि को स्पष्ट मूचित भी किया है, जिसपरसे उनके व्याकरण-शास्त्रकी भी सूचना मिलती है। और श्रीप्रभाचन्द्राचार्यने अपने गद्यकथाकोशमें उन्हें तर्कशास्त्रकी तरह व्याकरण -शास्त्रका भी व्या- ख्याता (निर्माता) लिखा है / इतने पर भी प्रो 0 साहबका अपने पिछले लेख में यह लिखना कि “उनका बनाया हुप्रा म सो कोई गन्दशास्त्र उपलब्ध है और न उसके कोई प्राचीन प्रामाणिक उल्लेख पाये जाते है" व्यर्थकी * अनेकान्त वर्ष 7 किरण 3-4 पृ० 26 . .. * सत्साधुस्मरणमंगलपाठ, पृ० 34, 56 . अनेकन्त वर्ष 8 किरण 10-11 पृ० 416 'जैनग्रन्थावली में रायल एशियाटिक सोसाइटीकी रिपोर्ट के माधारपर समन्तभद्रके एक प्राकृत व्याकरणका नामोल्लेख है और उसे 1200 श्लोकपरिमारण मूचित किया है।