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________________ 464 जैनसाहित्य श्रीर इतिहासपर विशद प्रकाश ऐसी हालतमें प्रो० साहबका समन्तभद्रके साथ देव' पदकी असतिकी कल्पना करना ठीक नहीं है-वे साहित्यिकोमें 'देव' विशेषण के साथ भी प्रसिद्धि को प्राप्त रहे हैं। और अब प्रो० साहबका अपने अन्तिम लेखमें यह लिखना तो कुछ भी अर्थ नही रखता कि जो उल्लेख प्रस्तुत किये गये हैं उन सबमें 'देव' पद समन्त. भद्रके साथ-साथ पाया जाता है / ऐमा कोई एक भी उल्लेख नहीं जहाँ केवल 'देव' शब्दसे समन्तभद्रका अभिप्राय प्रकट किया गया हो।" यह वास्तवमें कोई उत्तर नहीं, इसे केवल उत्तरके लिये ही उत्तर कहा जा सकता है; क्योंकि जब कोई विशेषरण किसीके माथ जुड़ा होता है तभी तो वह किसी प्रमंगपर संकेतादिके रूपमें अलगसे भी कहा जा सकता है, जो विशेषण कभी माथमें जुड़ा ही न हो वह न तो अलगसे कहा जा सकता है और न उमका वाचक ही हो सकता है। प्रो० साहब ऐमा कोई भी उल्लेख प्रस्तुत नहीं कर सकेगे जिसमें समन्तभद्रके साथ स्वामी पद जुड़ने से पहले उन्हें केरल 'स्वामी' पदके द्वारा उल्लेखित किया गया हो / अत: मूल बात ममन्नभद्रके माय 'देव' विशेषरणका पाया जाना है, जिसके उल्लेख प्रस्तुत किये गये हैं और जिनके प्राधारपर द्वितीय पद्यमें प्रयुक्त हुए 'देव' विशेपण अथवा उपपदको ममन्तभद्रके माथ संगत कहा जा सकता है। प्रो० माहब वादिराजके इमी उल्लेखको वैमा एक उल्लेख ममम, मकते हैं जिममें 'देव' शब्दसे ममन्तभद्रका अभिप्राय प्रगट किया गया है; क्योंकि वादिराजके सामने अनेक प्राचीन उल्लेखोंके रूपमें समन्तभद्रको भी 'देव' पद के द्वाग उल्लखित करनेके कारण मौजूद थे। इसके सिवाय, प्रो. माहबने श्लेषार्थको लिये हुए जो एक पद्य 'देवं स्वामिनममलं विद्यानन्दं प्रणम्य निजभक्त्या' इत्यादि उदाहरण के रूपमें प्रस्तुत किया है उसका प्रर्थ जब स्वामी समन्तभद्रपरक किया जाता है तब 'देव पद स्वामी समन्तभद्रका, प्रकलङ्क परक अर्थ करने से अकलंकका और विद्यानन्द परक अर्थ करने से विद्यानन्दका ही वाचक होता है / इससे समन्तभद्र नाम माथमें न रहते हुए भी समन्तभद्रके लिये 'देव' पदका अलगसे प्रयोग अवटित नहीं है, यह प्रो० साहब-द्वारा प्रस्तुत किये गये पद्यमे भी जाना जाता है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि वादिराज 'देव' शब्दको एकान्ततः
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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