SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 452 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश पौर रत्नमालाका रचनाकाल समीप माजाते है और उनके बीच शताब्दियोंका अन्तराल नहीं रहता"*। साथ ही प्रागे चलकर उसे तीन मापत्तियोंका रूप भी दे दिया है परन्तु इस बातको भुला दिया कि उनका यह सब प्रयत्न पोर कथन उनके पूर्वकथन एवं प्रतिपादनके विरुद्ध जाता है। उन्हें या तो अपने पूर्वकथनको वापिस ले लेना चाहिये था पोर या उसके विरुद्ध इस नये कथनका प्रयत्न तथा नई मापतियोंका मायोजन नही करना चाहिये था / दोनों परस्पर विरुद्ध बाते एक साथ नहीं चल सकी। अब यदि प्रोफेसर साहब अपने उम पूर्व कथनको वापिस लेते है तो उनकी वह थियोरी ( Theory ) अथवा मत-मान्यता ही हिगड जाती है जिसे लेकर वे 'जैन-साहित्यका एक विलुप्त अध्याय' लिखने में प्रवृत्त हुए हैं और यहाँ तक लिख गये हैं कि 'बोडिक-मडके मंस्थापक शिवभूति, स्थविराली में उल्लिखित मायं शिवभूति, भगवती पाराधनाके कर्ता शिवायं और उमारवानिके गुरुके गुरु शिवश्री ये चारों एक ही व्यक्ति है। इमी तरह शिवभूतिके शिष्य एवं उत्तराधिकारी भद्र, नियुक्तियों के कर्ता भद्रबाहु, द्वादश-वर्षीय भिक्षकी भविष्यवारणीके कर्ता व दक्षिणापथको विहार करने वाले भद्रकाहकुन्दकुन्दाचार्य के गुरु भद्रबाहु, वनवासी सडके प्रस्थापक ममनभद्र पोर प्राप्तमीमांसाके कर्ता ममन्तभद्र ये सब भी एक ही व्यक्ति है।' और यदि प्रोफेसर साहब अपने उम पूर्वकयनको वापिस न लेकर पिछली तीन युक्तियोंको हो वापिस लेते हैं तो फिर उनपर विचार की जरूरत ही नहीं रहती-प्रथम मूल प्रापत्ति ही विचारके योग्य रह जाती है भोर उमपर ऊपर विचार किया ही जा चुका है। यह भी हो सकता है कि प्रो० साहबके उस विलुप्त प्रध्यायके विरोध में जो दो लेख (1 क्या नियुक्तिकार भद्रबाहु और स्वामी समन्तभद्र एक है ?, 2 शिवभूति, शिवायं पौर शिवकुमार ) बीग्मेवामन्दिर के विद्वानों द्वारा लिखे * अनेकान्त वर्ष 7, किरण 5-6, पृ० 54 अनेकान्त वर्ष 8, कि० 3 पृ०१३२ तथा वर्ष 6. कि० 1 पृ. 1, 10
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy