________________ रत्नकरण्डके कर्तृत्व विषयपर मेरा विचार और निर्णय 451 उक्त पद्यको लेकर प्राप्तमीमांसा और रत्नकरण्डका भिन्न-कर्तृत्व सिद्ध नहीं किया जा सकता / मत: इस विषयमें प्रोफेसर साहबकी प्रथम प्रापत्तिके लिये कोई स्थान नहीं रहता-वह किमी तरह भी समुचित प्रतीत नहीं होती। प्रब में प्रो० हीरालालजीकी शेष तीनों प्रापतियोंपर भी अपना विचार पौर निर्णय प्रकट कर देना चाहता है। परन्तु उसे प्रकट कर देने के पूर्व यह बनला देना चाहता है कि प्रो० माहबने, अपनी प्रथम मूल प्रापत्तिको "जनमाहित्यका एक विलुम प्रध्याय' नामक निवन्ध प्रस्तुत करने हा. यह प्रतिपादन किया था कि 'रत्नकरण्डश्रावकाचार कुन्दकुन्दाचायके उपदंगों के पश्चात उन्हों के समर्थन में लिखा गया है, और इलिये इमके कर्ता व ममन्न. भद्र होमरते है जिनका उल्लेख मिलालेख व पट्टानियोंमें कन्दकन्दके पानात पाया जाता है / कुन्दकुन्दाचार्य पोर उमास्वामीका ममय वीरनिर्वाण मे लगभग 650 वर्ष पश्चात ( वि. म. 18. ) मिद्ध होता है-फरन: ग्ल. करण्श्रावकाचार भोर उमक कर्ता ममन्नमहमा समय विक्रपकी इमरी गाना. ब्दीका प्रन्तिम भाग प्रथना नीमरी सताक्षी का पूर्वाधं होना चाहिये ( यही ममय जैन समाज में ग्रामनौर पर माना भी जाना है)।' माथ ही यह भी बनाया था कि उनकार का ये समभद्र उन शिवकोटिक गुम भी हो सकते हैं जो र नमानाके बना है। इस चिटनी बातपर प्रानि करते हमा 0 दरबारीलालजीने अनेक युक्तियों के प्राधारपर जब यह प्रदान किया निरन्नमाला एक प्रानिक अन्य है, जबरगटर बनानारमे मतादिदी बादकी र नना है, विक्रमको 51 वी शतानीक पूर्व की ना यह हो नहीं मानी पोर न ना रहश्रावकाचार के कर्मा समन्तभद्र के माशात् नियमो कृति होमकी है। नब प्रा- माह बने उतरकी धुन में कुछ बल्पित युक्तियों के आधार पर यह तो लिम्व दिया कि "रत्नकररका ममय विद्यानन्दक समय (ईमबो मन् के लगभग) के पश्चात् मोर वादिराक ममय अर्थात् गक मं०६४७ (60 मन् 15) के पूर्व सिट होता है। इस समयावधि के प्रकाशमे रत्नकरण्ड बाकाचार जैन-इतिहामका एक विलुप्त प्रयाय पृ.१८, 20 अनेकान्त वर्ष 6, किरण 1, पृ३८०.३८२