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________________ 446 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश व्यवस्थापोंके साथ नहीं बैठती जिनके अनुसार केवलीके भी वेदनीयकर्म-जन्य वेदनाएं होती है, और इसलिये रत्नकरण्डका उक्त पद्य इस . कारिकाके सर्वथा विरुद्ध पड़ता है-दोनों ग्रन्थोंका एककर्तृत्व स्वीकार करने में यह विरोष बाधक हैं' * / जहां तक मैंने इस कारिकाके अर्थपर उसके पूर्वापर-सम्बन्धकी दृष्टिसे और दोनों विद्वानोंके ऊहापोहको ध्यानमें लेकर विचार किया है, मुझे इसमें सर्वज्ञका कहीं कोई उल्लेख मालूम नहीं होता / प्रो० साहबका जो यह कहना है कि 'कारिकागत' 'वीतरागः' और 'विद्वान्' पद दोनों एक ही मुनिव्यक्तिके वाचफ है और वह व्यक्ति 'सर्वज्ञ' है, जिसका द्योतक विद्वान् पद साथ में लगा है' है वह ठीक नहीं है / क्योंकि पूर्वकारिकामें X जिस प्रकार अचेतन और अकषाय ( वीतराग ) ऐसे दो प्रबन्धक व्यक्तियोंमें बन्धका प्रसंग उपस्थित करके परमें दुःख:सुखके उत्पादनका निमित्तमात्र होनेसे पाप-पुण्यके बन्धकी एकान्त मान्यताको सदोष सूचित किया है उसी प्रकार इस कारिकामें भी वीतराग मनि और विद्वान् ऐसे दो प्रबन्धक व्यक्तियों में बन्धका प्रसंग उपस्थित करके स्व (निज) में दुःख-सुखके उत्पादनका निमित्तमात्र होनेसे पुण्य-पापके बन्धकी एकान्त मान्यताको सदोष बतलाया है; जैसा कि प्रष्टसहस्रीकार श्रीविद्यानन्दयाचार्यके निम्न टीका-वाक्यसे भी प्रकट है:- . - "स्वस्मिन् दुःखोत्पादनात पुण्यं सुखोत्पादनात्तु पापमिति यदीप्यते तदा वीतरागो विद्वांश्च मुनिस्ताभ्यां पुण्यपापाभ्यामात्मानं युज्यान्निमित्तसद्भावान्, वीतरागस्य कायक्लेशादिरूपदुःखोत्पत्तेषिदुषस्तत्वज्ञानसन्तोषलक्षणसुखोत्पत्तेस्तन्निमित्तत्वात् / " इसमें वीतरागके कायक्लेशादिरूप दुःखकी उत्पत्तिको और विद्वान्के तत्त्वज्ञान-सन्तोष लक्षण सुखकी उत्पत्तिको अलग-अलग बतलाकर दोनों ( वीतराग पौर विद्वान ) के व्यक्तित्वको साफ तौरपर अलग घोषित कर दिया है / भोर * अनेकान्त वर्ष 8, किरण 3, पृ० 132 तथा वर्ष 6, कि० 1, पृ० 6 भनेकान्त वर्ष 7, कि० 3.4, पृ० 34 x पापं ध्र परे दुःखात् पुण्यं च सुखतो यदि / प्रचेतनाकषायो च बध्येयातां निमित्ततः // 9. .:
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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