________________ ___ - समबमनका युबत्यनुशासन 426 सह तीर्थ पहातमा है। कहा.वे इस तीर्थ के सन्ने उपासक है ? इसकी गुणगरिमा एवं अक्तिसे भले प्रकार परिचित है ?, और लोकहित कीष्टिसे इसे प्रचारमें लाता चाहते है ? उत्तर में यही कहना होगा कि नहीं। यदि ऐसा न ोता तो मात्र इसके प्रचार और प्रसारको दिशामें कोई खास प्रपल होता दुपा देखने में प्रात, जो नहीं देखा जा रहा है / खेद है कि ऐसे महान् प्रभावक अन्योंको हिन्दी प्रादिक विशिष्ट अनुवादादिके साथ प्रचारमें लानका कोई स्वास प्रयत्न भी पाज तक नहीं हो सका है, जो वीरनासनका सिक्का लोक हृदयोंगर अंकित कर उन्हें सन्मार्ग की पोर लगाने वाले हैं। / प्रस्तुत ग्रंथ कितना प्रभावशानी और महिमामय है, इसका विशेष अनुभव तो विज्ञपाठक इसके गहरे अध्ययनमे ही कर सकेंगे। यहापर मिर्फ इतना ही बतना देना उचित जान पडता है कि श्रीविद्यानन्द प्राचार्यने युक्त्यनुशासनका जयघोष करते हुए उसे 'प्रमाण-नय-निर्गीत-वस्तु-नत्त्वमबाधित' (1) विशेषगके द्वारा प्रमाण-नयके प्राधार पर वन्नुनत्वका प्रबाधित रूपमे निर्णायक बनलाया है / साय ही. टोकाके अन्तिम पद्यमे यह भी बतलाया है कि स्वामी ममन्नभद्रने पम्बिल तत्वममूहकी माक्षात् ममीक्षा कर हमकी रचना की है।' और श्री. जिनमनाचायने, अपने हरिवगपुगण में, 'कृतयुक्त्यनुमामन' पदके माथ वच:' समन्तभद्रस्य बीरस्येव विजम्भत हम वाक्यकी योजना कर यह घोषित किया है कि समन्मभद्रका युमन्यनुगामन अन्य वीरभगवानके वचन (प्रागम) के समान प्रकाममान एवं प्रभावादिक मे युन है। और इसमें साफ़ जाना जाता है कि यह ग्रन्थ बहुत प्रामाणिक है, प्रागमकी कोटि में स्थित है और इसका निर्माण बीजपदो अथवा गम्भीरार्थक और बह्वथंक सूत्रों द्वारा हमा है / मचमुच इम अन्यकी कारिकाएं प्राय: प्रोक गद्यसूत्रोंसे निर्मित हुई जान पड़ती है, जो बहुत ही गाम्भीर्य नथा पर्थ-गौरवको लिये हर है। उदाहरण के लिए ७वीं कारिकाको लीजिये, इसमें निम्न चार सूत्रोंका समावेश है 1 अभेद-भेदात्मकमर्थतत्त्वम् / 2 स्वतन्त्राऽन्यतरत्स्व पुष्पम् / 3 प्रवृत्तिमत्वात्समवायवृत्तेः (संसर्गहानिः ) / 4 संसर्गहाने: सकलाऽर्थ-हानिः /