________________ 22 . समन्तभद्रका युक्त्यनुशासन ग्रन्थ-नाम इम ग्रन्थका सुप्रसिद्ध नाम 'युक्त्यनुशासन' है। यद्यपि ग्रन्थके प्रादि तथा अन्तके पचों में इस नामका कोई उल्लेख नहीं है-उनमें स्पष्टतया वीर-जिनके स्तोत्रकी प्रतिज्ञा मोर उमीको परिममाप्तिका उल्लेख है और इससे ग्रन्थका मून प्रथवा प्रथम नाम ' वीजनस्तोत्र' जान पड़ता है-फिर भी ग्रन्थकी उपलब्ध प्रतियों तथा गास्त्र भण्डारों की मूचियों में 'युक्त्यनुशासन' नाममे ही इसका प्रायः उल्लेख मिलता है / टीकाकार श्रीविद्यानन्दाचार्यने तो बहुत स्पष्ट शब्दों में टीकार मंगलपद्य, मध्यपद्य प्रौर प्रन्यपद्यमे इसको समन्तभद्रका 'युक्त्यनुशासन' नामका स्तोत्रग्रन्थ उद्घोषित किया है: जमा कि उन पद्योंके निम्न वाक्योंसे प्रकट है: 'जीयात्समन्तभद्रस्य स्तोत्र युक्त्यनुशासनम" (1) "स्तोत्रे युक्त्यनुशासने जिनपतेारस्य निःशेषतः (2) "श्रीमद्वीरजिनेश्वराऽमलगुणस्तोत्रं परीक्षेक्षणैः साक्षात्स्वामिसमन्तभद्रगुरुभिस्तत्वं समीक्ष्याऽखिलम् / प्रोक्तं युक्त्यनुशासनं विजयिभि: म्याद्वादमार्गानुगैः" (6) + "स्तुतिगोचरत्वं निनोपवः स्मो वयमद्य वीर' (1); "नरामनः स्तोत्रं भवति भवपाशच्छिदि मुनी" (63); .: "इति "स्तुतः शक्त्या श्रेयः पदमधिगतस्त्वं जिन: मया। महावीरो बोरो दुरितपरसेनाभिविजये..." (64) /