________________ समन्तभद्रका स्वयम्भूस्तोत्र बका-सम्पतिसे-सम्पन्न भी सूचित किया है। इस तरह बम, त्याग, और समाधि (तया उनसे सम्बन्धित यम-नियमादित) सबमें दयाकी प्रधानता है। इसीसे मुमुक्षके लिये कर्मयोगके अंगोंमें 'दया' को अलग ही रखा गया है और पहला स्थान दिया गया है। स्वामी समन्तभद्र ने अपने दूसरे महान अन्य 'युश्यनुशासन' में कर्मयोगके इन चार मङ्गों दया, दम, त्याग मोर समाधिका इसी क्रमसे उल्लेख किया है। पौर साथ ही यह निर्दिष्ट किया है कि वीर जिनेन्द्रका शासन ( मत ) नयप्रमाणके द्वारा बस्तु-तत्त्वको स्पष्ट करने के साथ साथ इन चारों की तत्परताको लिये हुए है, ये सब उसकी खास विशेषताएं है और इन्हींके कारण वह अद्वितीय है तथा प्रखिन प्रवादियों के द्वारा मवृष्य है-प्रजय्य है। जैसा कि उक्त अन्धकी निम्न कारिका से प्रकट है: दया-दम-त्याग-समाधि-निष्ठं नय-प्रमाण-प्रकृताजसार्थम् / अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवादर्जिन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् // 6 // यह कारिका बड़े महत्त्वकी है। इसमे वीरजिनेन्द्रक शासनका बीजपदोंमें मूत्ररूपसे सार संकलन करते हुए भक्तियोग और कर्मयोग तीनोंका मुन्दर ममावेश किया गया है। इसका पहला चरण कर्मयोगकी, दूसरा चरण जानयोगकी पौर शेष तीनों चरण प्राय: भक्तियोगकी मंसूचनाको लिये हुए है। पोर इसमे यह स्पष्ट जाना जाता है कि क्या, दम, त्याग और ममाधि इन चारों में वीरशासनका सारा कर्मयोग समाविष्ट है। यम, नियम, संयम, प्रत, विनय, शील, तप, ध्यान, चारित्र, इन्द्रियजय, पायजय, परीपहजय, मोहविजय, कर्मविजय, गुप्ति, समिति, अनुप्रेक्षा, त्रिदण्ड, हिनदिविरित और क्षमादिकके रूपमें जो भी कर्मयोग अन्यत्र पाया जाता है वह सब इन चारोंमें * श्री विद्यानन्दाचार्य इस कमकी म.पंकना बतलाते हुए टीकामें लिखते है-निमित-नैमित्तिक-भाव-निबन्धन: पूर्वोत्तर-वचन-कम: / दण हि निमित्त दमस्य, तस्यां सस्यां तदुपरोः / दमश्च त्यागस्य (निमित्त) तस्मिन्सति तद्घटनात् / त्यागश्व समापेस्तस्मिन्सस्येव विक्षेपादिनिवृत्ति-सिटेरेकाप्रस्थ समामिविशेषस्योरात: मन्यथा तनुपपत्तेः।"