________________ 403 समन्तभद्रका स्वयम्भूस्तोत्र गया है उन सबका त्याग एवं परिहार भी कर्मयोग में दाखिल(न.मिम) है / पार इसलिये कर्मयोग-सम्बन्धी उन सब बातोंको पूगेल्लिखित बानयोगये ही जान सेना और समझ लेना चाहिये। उदाहरण के तौरपर प्रथम जिन-स्तवनके मानयोगमें ममत्वसे विरक्त होना, बधू.वितादि परिग्रहका त्याग करके मिन-मीक्षा लेना, उपमर्ग-परीपहोंका समभावमे सहना मोर सदनस-नियमोंसे चलायमान न होगा-जमी बिन बानोंको पूर्णविकासके लिये प्रावश्यक बनलाया गया है उनका और उनकी इस पाकताका परिमान शानयोग समन्ध रखता है मोर उनपर अमल करना नया उन्हें अपने जीवन में उतारना यह कर्मयोगका विषय है। माथ ही, 'मग्न द्वापर मूनकारगको परने ही समाधितेजमे भस्म किया जाता है. यह जो विधिवयर दिया गया है इसके ममंगो समझना, इसमें अनिलम्बिन दायो, उनके भूनकारगों, ममापिने और उसकी प्रकिया मानूम बचपनुभवमे लाना, यह, मन जानयोगका विप पोर उन दोषों तथा उनसे कारको उग प्रकार भाम करनेका जो प्रयत्न, पमन पपया अनुष्ठान है वह गव मयोगी नहत्य नवनीक शानयोगमेमे भी कमोग-ममन्धी वाभाविण कर. पनगमे समझ लेना चाहिये. और यह बहुत कुछ मन्द-मा है। हमीम उन फिर यहा कर निबन्धमा वितार देनेकी जननी ममभी गई . सवन-कमकोसकर, मंगंगका उमके मादि म.न पीर पोष्टिनात मार पहोना अचित जान पहना है भोर वर पाठार लिए fron पाचकर हो / पन मारे प्रन्थकारन व मन करकम देने का प्रागे प्रपन्न किया जाता है। प्रत्यके म्याकी यथावस्यक बना कर भीनर पचाकोमें रहेगी। कर्मयोगका माप और भन्न कमयोगका परमात्माका पूर्णत: विका। पापा हम पूर्ण विकामको सम्मो-NATIR (, हारथा, पारनलक्ष्मीको नब्धि, बिनश्री नवा पायनापीकी प्रालि (.., 8), पाहंन्य-पदावाति (133), भारम्तिक स्वास्थ्य = मस्त (31). पाम विद्युत (16), कंवल्योपम्पि (55). मुक्ति मिति (20), निति (50.68), मोक्ष (60, 73,