________________ 380 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश विकास हुमा भी होता है तो वह भी किया कराया सब गया जब माया हुंकार' की लोकोक्तिके अनुसार जाता रहता अथवा दूषित हो जाता है। भक्तियोगसे महंकार मरता है, इसीसे विकास-मार्गमें सबसे पहले भक्तियोगको अपनाया गया है और इसीसे स्तोत्रग्रन्थोंके रचनेमें समन्तभद्र प्रायः प्रवृत्त हुए जान पड़ते है। प्राप्तसुरुषों प्रयवा विकासको प्राप्त शुदात्मामों के प्रति माचार्य समन्तभद्र कितने विनम्र थे और उनके गुणोंमें कितने अनुरागी थे यह उनके स्तुनि-ग्रन्थोंसे भले प्रकार जाना जाता है। उन्होंने स्वयं 'स्तुतिविद्या में अपने विकासका प्रधान श्रेय 'भक्तियोग'को दिया है (पघ११४ ); भगवान जिनदेवके स्तवनको भव-वनको भस्म करने वाली अग्नि लिखा है; उनके स्मरणको कनेश-समुद्रसे पार करनेवाली नौका बनलाया है (10 115) पोर उनके भजनको लोहेसे पारसमरिण के स्पर्श-समान बतलाते हुए यह घोषित किया है कि उसके प्रभावसे मनुष्य विशदशानी होता हुमा तेजको धारण करता है और उसका व वन भी सारभूत हो जाता है (80) / अब देखना यह है कि प्रस्तुत स्वयम्भूग्रन्थमें भक्तियोगके मङ्गम्वरूप 'स्तुति' मादिके विषयमें क्या कुछ कहा है और उनका क्या उद्देमा, लक्ष्य प्रयवा हेतु प्रकट किया है: लोकमें 'स्तुति' का जो रूप प्रचलित है उमे बतलाते हुए और वमी स्तुति करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए, स्वामी जी लिखते है गुण-स्तोकं मदुल्लध्य तय हुव-कथा स्तुतिः / श्रानन्यात्ते गुणा वक्तुमशक्यास्त्वयि सा कथम् // 86 // तथाऽपि ते मुनीन्द्रस्य यतो नामाऽपि कीर्तितम् / पुनाति पुण्यकीतेर्नस्ततो अयाम किश्चन // 7 // अर्थात-नियमान गुणोंकी अल्पताको उल्लङ्घन करके जो उनके बहुत्वकी कथा की जाती है-उन्हें बड़ा-चढ़ाकर कहा जाता है-उसे लोकमें 'स्तुति' कहते है / वह स्तुति ( हे जिन ! ) मागमें कैसे बन सकती है ? नहीं बन सकती / क्योंकि मापके गुण अनन्त होनेसे पूरे तौर पर कहे ही नहीं जा सकतेबढ़ा-चढ़ाकर कहनेकी तो बात ही दूर है। फिर भी पाप पुण्यकीति मुनीन्द्रका