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________________ समन्तभद्रका स्वयम्भूस्तोत्र 377 भक्तियोग और स्तुति-प्रार्थनादि-रहस्य जैनधर्मके अनुसार, सब जीव द्रव्यदृष्टि से अथवा शुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षा परस्पर समान है-कोई भेद नहीं-सबका वास्तविक गुण-स्वभाव एक ही है। प्रत्येक स्वभावसे ही अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, मनन्तसुख और अनन्तवीर्यादि मनन्तशक्तियोंका प्राधार है-पिण्ड है। परन्तु अनादिकालसे जीवोंके साथ कर्ममल लगा हुआ है, जिसकी मूल प्रकृतियाँ पाठ, उत्तर प्रकृतियां एकसौ मडतालीम मोर उत्तरोत्तर प्रकृतियां असंख्य है / इस कर्म-मलके कारण जीवोंका असली स्वभाव प्राछादित है, उनकी वे शक्तियां प्रविपित है और वे पर. तंत्र हए नाना प्रकार की पर्यायें धारण करते हुए नजर पाते हैं। अनेक अवस्थानों को लिए हुए संसारका जितना भी प्राणिवर्ग है वह सब उसी कम मलका परिणाम है - उसीके भेदसे यह सब जीवजगत् भेदरूप है, और जीवकी इम अवस्थाको विमाव-परिणति' कहते है / जबतक किसी जीवकी यह विभावपरिणिति बनी रहती है तब तक वह 'समारी' कहलाता है और तभी तक उसे संसारमें कर्मानुमार नाना प्रकारके रूप धारण करके परिभ्रमण करना तथा दुःख उठाना होता है / जब योग्य-माधनों के बलपर यह विभाव-परिणति मिट जाती है-प्रात्मामें कर्म-मनका सम्बन्ध नहीं रहना-और उमका निज स्वभाव साङ्गरूपसे अथवा पूर्णतया विमित हो जाता है, तब वह जीवात्मा संमारपरिभ्रमगामे छूटकर मुक्तिको प्राप्त हो जाता है और मुक्त, सिद्ध अथवा परमात्मा कहलाता है, जिमकी दो प्रवम्पाए है-एक जीवन्मुक्त पोर दूसरी विदेहमुक्त / इस प्रकार पर्यायप्टिमे जीवोंके 'समारी' पौर सिद्ध' ऐसे मुख्य दो भेद कहे जाते है; अथवा पविकमिन, मल्पविकमिन, बहविकमित पोर पूर्ण-विकसित ऐसे चार भागोंमें भी उन्हें बांटा जा सकता है। और इमलिये जो अधिकाधिक विक. सित है वे स्वरूपसे ही उनके पूज्य एवं माराध्य है जो पविकसित या महाविकसित है क्योंकि पारमगुरणोंका विकास सबके लिये इष्ट है। ऐमो स्पिति होते हुए यह स्पष्ट है कि संसारी जीवोंका हित इसी में है कि वे अपनी विभाव-परिगतिको छोड़कर स्वभावमें स्थिर होने पर्थात् सिद्धिको प्रास करनेका यत्न करें। इसके लिये पात्म-गुणोंका परिचय चाहिये गुणोंमें
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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