________________ समन्तभद्रका स्वयम्भूस्तोत्र 371 स्माद्वादरूप प्रवचन दृष्ट और इष्टके साथ विरोध न रखनेके कारण निर्दोष है, जब कि दूसरों का-प्रस्याद्वादियोंका-प्रवचन उभय विरोषको लिए हुए होनेसे वसा नहीं है / वे सुरासुरोंसे पूजित होते हुए भी ग्रन्थिक सत्वोंके-मिथ्यात्वादिपरिग्रहसे युक्त प्राणियोंके-(प्रभक्त) हृदयसे प्राप्त होनेवाले प्रणामोंसे पूजित नहीं है। ओर अनावरणज्योति होकर उस धामको-मुक्तिस्थान अथवा सिद्धशिलाको-प्राप्त हुए हैं जो अनावरण-ज्योतियोंसे प्रकाशमान है / वे उस गुणभूषणको-सर्वश-वीतरागतादि-गुगणरूप प्राभूषण-समूहको-धारण किए हुए थे जो सभ्यजनों अथवा समवसरण-सभा-स्थित भव्यजनोंको रुचिकर था मौर श्रीमे-अष्टप्रातिहार्यादिरूप-विभूतिसे-ऐसे रूपमें पुष्ट था जिससे उसकी शोभा और भी बढ़ गई थी। साथ ही उनके शरीरका सौन्दर्य और प्राकर्षण पूर्णचन्द्रमासे भी बढ़ा चढ़ा था। उन्होंने निष्कपट यम प्रौर दमका-महावतादिके अनुष्ठान और कपायों तया इन्द्रियोंके जयका-उपदेश दिया है / उनका उदार विहार उस महाशक्ति-सम्पन्न गजराजके समान हुमा है जो करते हुए मदका दान देते हुए और मार्गमें बाधक गिरिभित्तियोंका विदारण करते हुए (फलत: जो बाधक नहीं उन्हें स्थिर रखते हुए) स्वाधीन चला जाता है / वीरजिनेन्द्रने अपने विहारके समय सबको हिसाका-प्रभयका-दान दिया है, शमवादोंकी-रागादिक दोपोंकी उपशान्तिके प्रतिपादक प्रागमोंकी-रक्षा की है और वैषम्यस्थापक, हिंसाविधायक एवं सर्वथा एकान्त-प्रतिपादक उन सभी वादोंका-मतोंका-खण्डन किया है जो गिरिभित्तियोंकी तरह सन्मार्गमें बाधक बने हुए थे। उनका शासन नयोंके भङ्ग अथवा भक्तिरूप अलंकारोंसे अलंकृत है-अनेकान्तवादका प्राश्रय लेकर नयोंके सापेक्ष व्यवहारकी सुन्दर शिक्षा देना है-और इसतरह यथार्य वस्तुतत्त्वके निरूपण और परहित-प्रतिपादनादि में समर्थ होता हुमा बहुगुण-सम्पत्तिमे युक्त है, पूर्ण है और समन्तभद्र है-सब भोर से भद्ररूप, निर्बाधतादि-विशिष्ट-शोभासे सम्पन्न एवं जगतके लिये कल्याणकारी है; जब कि दूसरोंका-एकान्तवादियोंका-शासन मधुर वचनोंके विन्याससे मनोज्ञ होता हुमा भी बहुगुणोंकी सम्पतिसे विकल है-सत्यशासनके योग्य जो यथार्थवादिता, और परहित-प्रतिपादनादिरूप बहुतसे गुण है उनकीशोमाते रहित है। . , . .