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________________ 368 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश प्राभूषणों, वेषों तथा मायुधोंका त्यागी और विद्या, कषायेन्द्रियजय तथा दयाकी उत्कृष्टताको लिये हुए था। उनके शरीरके वृहत प्रभामण्डलसे बाह्य अन्धकार और ध्यानतेजसे आध्यात्मिक अन्धकार दूर हुअा था। समवरणसभामें व्याप्त होनेवाला उनका वचनामृत सर्वभाषामोंमें परिणत होनेके स्वभावको लिए हुए था तथा प्राणियोंको तृप्ति प्रदान करनेवाला था। उनकी दृष्टि अनेकान्तात्मक थी। उस सती दृष्टि के महत्वादिका ध्यायन तथा उनके स्याद्वादशासनादिका कुछ विशेष कथन सात कारिकाप्रोंमें किया गया है। (19) मल्लि-जिनको जब सकल पदार्थोका साक्षात् प्रत्यवबोध (केवलज्ञान ) हा था तब देवों तथा मयंजनोंके साथ सारे ही जगत्ने हाथ जोड़कर उन्हें नमस्कार किया था। उनकी शरीराकृति सुवर्ण-निर्मित-जैसी थी और स्फुरित माभासे परिमण्डल किये हुए थी। वाणी भी यथार्थ वस्तुतत्वका कथन करनेवाली और साधुजनोंको रमानेवाली थी। जिनके सामने गलितमान हुए प्रतितीथिजन ( एकान्तवादमतानुयायी) पृथ्वीपर कहीं विवाद नहीं करते थे। और पृथ्वी भी ( उनके बिहारके समय ) पद-पदपर विकसित कमलोंसे मृदु-हासको लिये हुए रमणीय हुई थी। उन्हें सब ओरसे (प्रचुरपरिमाणमे ) शिष्य साधुनोंका विभव (ऐश्वर्य) प्राप्त हुआ था और उनका तीर्थ (गासन) भी संसार-समुद्रसे भयभीत प्राणियोंको पार उतारनेके लिये प्रधान मार्ग बना था। (20) मुनिसुव्रत-जिन मुनियोंकी परिषद्में-गणधरादिक शानियोंकी महती सभा (समवरण)में-उसी प्रकार शोभाको प्राप्त हुए है जिस प्रकार कि नक्षत्रोंके समूहले परिवेष्टित चन्द्रमा शोभाको प्राप्त होता है / उनका शरीर तपसे उत्पन्न हुई तरुण मोरके कण्ठवर्ग-जमी प्रामामे उसी प्रकार शोभित था जिस प्रकार कि चन्द्रमाके परिमण्डलकी दीसि शोभती है। साथ ही, वह चन्द्रमाकी दीप्तिके समान निर्मल शुक्न रुधिरसे युक्त. मति मुगंधित, रजरहित शिवस्वरूप (स्व-पर-कल्याणमय) तथा प्रति प्राश्चर्यको लिए हुए था। उनका यह वचन कि 'चर और प्रचर जगत् प्रतिक्षण स्थिति-जनन-निरोध- लक्षणको लिये हुए है'-प्रत्येक समयमें घोव्य, उत्पाद और व्यय (विनाश) स्वरूप हैसर्वशताका घोतक है / वे अनुपम योगबलसे पापमलरूप पाठों कलंकोंको
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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