________________ 366 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश (11) श्रेयो-जिनने प्रजाजनोंको श्रेयोमार्ग में अनुशासित किया था। उनके अनेकान्त-शासनकी कुछ बातोंका उल्लेख करनेके बाद लिखा है कि वे 'कैवल्यविभूतिके सम्राट् हुए हैं। (12) वासुपूज्य-जिन अभ्युदय क्रियानों के समय पूजाको प्राप्त हुए थे, त्रिदशेन्द्र-पूज्य थे और किसीकी पूजा या निन्दासे कोई प्रयोजन नहीं रखते थे। उनके शासनको कुछ बातोंका उल्लेख करके उनके बुधजन-अभिवन्ध होनेकी सार्थकताका द्योतन किया गया है। (13) विमल-जिनका शासन किस प्रकारसे नयोंकी विशेषताको लिये हए था उसका कुछ दिग्दर्शन कराते हुए लिखा है कि 'इसीसे वे अपना हित चाहने वालोंके द्वारा वन्दित थे' / कपाय नामके पीडनशील-शत्रुओंको, विशोपक कामदेवके दुरभिमानरूप अातंकको कैसे जीता और अपनी तृष्णानदीको कमे मुखाया, इत्यादि बातोंका इरा स्तवनमें उल्लेख है। (15) धर्म-जिन अनवद्य-धर्मतीर्थका प्रवर्तन करते हुए सत्पुरुपोके द्वारा 'धर्म' इम सार्थक संजाको लिए हुए माने गये है / उन्होंने तपरूप अग्नियों से अपने कर्मवनको दहन करके शाश्वत मुख प्राप्त किया है और इसलिये वे 'शङ्कर' है / वे देवों तथा मनुप्यके उत्तम समूहोंसे परिवेष्ठित तथा गणधरादि बुधजनोंमे परिचारित (मेवित) हुए (समवसरण-सभाम) उसी प्रकार शोभाको प्राप्त हुए थे जिसप्रकार कि प्राकाशमें तारकामोंमे परिवन निर्मल चन्द्रमा / प्रातिहार्यों मौर विभवोंसे विभूपित होते हुए भी वे उन्हींसे नहीं, किन्तु देहसे भी विरक्त रहे हैं / उन्होंने मनुष्यों तथा देवोंको मोक्षमार्ग सिखलाया, परन्तु शासनफलकी एषरगामे वे कभी पातुर नहीं हुए। उनके मन-वचन-कायकी प्रवृत्तियां इच्छाके बिना होते हुए भी मसमीक्ष्य नहीं होती थीं / वे मानुषी प्रकृतिका उल्लंघन कर गये थे, देवताओंके भी देवता ये मोर इसीसे 'परमदेवता'के पदको प्रात थे। (16) शान्ति-जिन शत्रुपोंसे प्रजाकी रक्षा करके अप्रतिम प्रतापके पार राजा हुए थे और भयंकर चकसे सर्वनरेन्द्र-समूहकों जीतकर चक्रवर्ती राजा