________________ समन्तभद्रका स्वयम्भूस्तोत्र 363 पौर उस छन्दका क्या लक्षण है, इसकी सूचना 'स्तवन-छन्द सूची' नामके एक परिशिष्टमें कर दी गई है, जिससे पाठकोंको इस ग्रन्थके छन्द-विषयका ठीक परिशान हो सके। * स्तवनोंमें स्तुतिगोचर-तीर्थकरोंके जो नाम दिये है वे सब क्रमश: इस प्रकार है 1 वृषभ, 2 प्रजित, 3 शम्भव, 4 अभिनन्दन, 5 सुमति, 6 पमप्रभ, 7 सुपार्श्व, 8 चन्द्रप्रभ, 6 सुविधि, 10 शीतल, 11 श्रेयांस, 12 वासुपूज्य, 13 विमल, 14 अनन्तजित्, 15 धर्म, 16 शान्ति, 17 कुन्थु, 18 अर, 16 मल्लि, 20 मुनिसुव्रत, 21 नमि, 22 अरिष्टनेमि, 23 पार्श्व, 24 वीर।। [ इनमेंसे वषभको इक्ष्वाकु-कुलका प्रादिपुरुष, अरिएनेमिको हरिवंशकेतु पोर पार्श्वको उग्रकुलाम्बरचन्द्र बतलाया है / शेष तीर्थक गेंके कुलका कोई उल्लेख नहीं किया गया है। उक्त सब नाम अन्वर्थ-संज्ञक है-नामानुकूल प्रथं विशेषको लिये हुए हैं। इनमेसे जिनकी अन्वर्थसंज्ञकता अथवा मार्थकताको स्तोत्रमें किसी-न-किसी तरह प्रकट किया गया है वे क्रमश: न० 2, 4, 5, 6, 8, 10, 11, 14, 15, 16, 17, 20 पर स्थित है / शेपमेमे कितने ही नामोंको मन्वर्थताको अनुवादमें व्यक्त किया गया है। स्तुत-तीर्थकरोंका परिचय इन तीर्थकरोंके स्तवनोंमें गुरणकीर्तनादिके साथ कुछ ऐसी बातों अथवा घटनामोंका भी उल्लेख मिलता है जो इतिहास तथा पुराणसे सम्बन्ध रखती हैं पौर स्वामी समन्तभद्र की लेखनीसे उल्लेखित होनेके कारण जिनका अपना विशेष महत्त्व है और इसलिए उनकी प्रधानताको लिये हुए यहाँ इन स्तवनोंमेंसे स्तुत-तीर्थकरोंका परिचय क्रमसे दिया जाता है: (1) वृषभजिन नाभिनन्दन ( नाभिरायके पुत्र ) थे, इक्ष्वाकुकुलके ग्रादिपुरुष ये मोर प्रथम प्रजापति थे। उन्होंने सबसे पहले प्रजाजनोंको कृष्यादिकर्मोमें सुशिक्षित किया था ( उनसे पहले यहां भोगभूमिकी प्रवृत्ति होनेसे लोग खेती-व्यापारादि करना अथवा मसि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प,