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________________ 362 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश हुमा है, जो सर्व पदाथों पौर तत्वोंको अपना विषय किये हुए है / इसके सिवाय, समन्तभद्रभारतीके स्तोता कवि नागराजने सारी ही. ममन्तभद्रवारपीके लिये 'वर्द्धमानदेव-बोध-बुद्ध-चिद्विलासिनी' और 'इन्द्रभूति-भाषित-प्रमेयजालगोचरा' जैसे विशेषणोंका प्रयोग करके यह सूचित किया है कि समन्तभद्रकी वाणी श्रीवर्धमानदेवके बोधसे प्रबुद्ध हुए चंतन्यके विलासको लिये हुए है और उसका विषय वह सारा पदार्थसमूह है जो इन्द्रभूति (गौतम) गणधरके द्वारा प्रभाषित हुआ है-द्वादशांगश्रुतके रूप में गूथा गया है / प्रस्तु। इस ग्रन्थमें भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोगकी जो निर्मल गंगा अथवा त्रिवेणी बहाई है उसमें अवगाहन-स्नान किए ही बनता है और उस अवगाहनसे जो शान्ति-सुख मिलता अथवा ज्ञानानन्दका लाभ होता है उसका कुछ पार नहीं-वह प्रायः अनिर्वचनीय है। इन तीनों योगों का अलग अलग विशेष परिचय आगे कराया जायगा। इस स्तोत्रमें 24 स्तवन है और वे भरतक्षेत्र सम्बन्धी वतमान अवपिणीकालमें अवतीर्ण हुए 24 जैन तीर्थंकरोंफी अलग घलग स्तुतिको लिये हुए है। स्तुति-पद्योंकी संख्या सब स्तवनोंमें ममान नहीं है। 18 वे स्तवनकी पद्य संख्या 20, 22 वें की 10 और 24 वे की पाठ है, जब कि होप 21 स्तवनामेमे प्रत्येक की पद्यसंम्या पांच पांचके रूपमे समान है। और इस तरह ग्रन्थके पद्योंकी कुल संख्या 143 है। ये सब पद्य अथवा स्नबन एक ही छन्दमें नहीं किन्नु भिन्न भिन्न रूपमे तेरह प्रकार के छन्दोंमें निर्मित हुए है, जिनके नाम हैवंशस्थ, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रव ना, उप जानि, रथोद्धना, वमन्ततिलका, पथ्यावश्य अमुष्टुप, मुभद्रामालती-मिश्र-यमक, वानवासिका, वैतालीय, शिखरगी, उद्गता प्रार्यागीति (स्कन्धक ) / कहीं कहीं एक स्तवनमें एकमे अधिक छन्दों का भी प्रयोग किया गया है। किम स्तवनका कोनसा पद्य किस छन्द में रचा गया है + तीर्थ सर्वपदार्थ-तत्त्व-विषय-स्याद्वाद-पुण्योदघे. भंव्यानामकलंकभावकृतये प्रामावि काले कली। येनाचार्य-समन्तभद्र-यतिना तस्मै नमः सन्ततं कृत्वा विवियते स्तवो भगवतां देवागमस्तस्कृतिः ।।-प्रष्टशती
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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