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________________ 354 जैनसाहित्य और इतिहसपर विशन प्रकाश ग्रन्थटीका और टीकाकार इस ग्रन्थरत्नपर वर्तमानमें एक ही संस्कृत टीका उपलब्ध है, जिसके कर्ताका विषय कुछ जटिलसा हो रहा है / माम-तौरपर इस टीकाके कर्ता नरसिंह नामके कोई महाकवि समझे जाते है, जिनका विशेष परिचय अज्ञात है, और उसका कारण प्रायः यही जान पड़ता है कि अनेक हस्तलिखित प्रतियोंके अन्तमें इस टीकाको 'श्रीनरसिंहमहाकविभन्योत्तमविरचिता' लिखा है। स्व. पं० पन्नालालजी बाकलीवालने इस ग्रन्थका 'जिनशनक' नामसे जो पहला संस्करण सन् 1912 में जयपुरकी एक ही प्रतिके प्राधारपर प्रकट किया था उसके टाइटिलपेजपर नरसिंह के साथ 'भट्ट' शब्द और जोड़कर इपे 'नरसिंहभट्टकृतव्याख्या' बना दिया था और तबो यह टीका नरसिंह भट्टकृत समभी जाने लगी है। परन्तु 'भट्ट' विशेषण की जयपकी किसी प्रतिमें तथा देहली धर्मपुराके नयामन्दिरकी प्रतिमें भी उपलब्धि नहीं हुई और इसलिये नरसिंहका यह 'भट्ट' विशेषगा तो व्यर्थ ही जान पडता है / अब देखना यह है कि इस टीकाके का वास्तव में न मिह ही हैं या कोई दूसरे विद्वान् / ___ श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीने अपने 'जनसाहित्य और इतिहास' नामक ग्रन्थके ३२वें प्रकरण में इस चर्चाको उठाया है और टीकाके प्रारम्भमें दिये हुए सात पद्योंकी स्थिति और अर्थ पर विचार करते हा पपना जो मत व्यक्त किया है उसका सार इस प्रकार है बाबा दुलीचन्दजी जयपुर के शास्त्रभण्डारकी प्रति नं० 216 पौर 266 के अन्त में लिखा है-'इति कविगमकवादिवाग्मित्वगुणालंकृतस्य श्रीसमनभद्र. स्य कृतिरियं जिनशतालंकारनाम समाप्ता | टीका श्रीनरसिंहमहाकविभव्योतमविरचिता समाप्ता / / + बाबा दुलीचन्दजी जयपुरके भंडारकी मूल ग्रन्थकी दो प्रतियों नं०४१५, 454 में भी ये सातों पद्य दिये हुए हैं, जो कि लेखकोंकी असावधानी और नासमझीका परिणाम है; क्योंकि मूलकृतिके ये पद्य कोई अंग नहीं है।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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