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________________ सर्वार्थसिद्धिपर समन्तभद्रका प्रभाव 336 यहाँ पज्पादने समन्तभद्र-प्रतिपादित दानके चारों भेदोंको अपनाया है। उनके 'भिक्षा' और 'प्रतिश्रय' शब्द क्रमश: 'पाहार' और 'प्रावास के लिये इस प्रकार ये तुलनाके कुछ नमूने है जो श्रीपूज्यपादकी 'सर्वार्थसिद्धि' पर स्वामी समन्तभद्रके प्रभावको उनके साहित्य एवं विचारोंकी छापको स्पष्टतया बतला रहे है और द्वितीय साधनको दूषित ठहरा रहे हैं। ऐसी हालतमें मित्रवर पं० सुखलाल जीका यह कथन कि 'पूज्यपादने समन्तभद्रकी असाधारण कृतियोंका किमी अंगमें स्पर्श भी नहीं किया बड़ा ही पाश्चर्यजनक जान पड़ता है और किसी तरह भी मगन मालूम नहीं होना / प्राशा है पं० सुखलालजी उक्त तुलनाकी रोगनीमें इस विषयपर फिर विचार करनेकी कृपा करेंगे।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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