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________________ सर्वार्थसिद्धिपर समन्तमद्रका प्रभाव पौर मर्षका कितना अधिक साम्य है यह इस तुलना तथा प्रागेकी दो तुलनामाँसे प्रकट है। यहां 'प्राणिपध' हिंसाका समानार्थक है और 'पादि' में 'प्रलम्भन' भी गर्मित है। (11) “वध-बन्धच्छेदादेवेंपावागाव परकलबारे। प्राण्यानमपध्यानं शासति जिनशासने विशदाः।" -रलकरण्ड०७८ "परेषां जयपराजयवधबन्धनानछेदपरस्वहरणादि कथं स्यादिति मनसा चिन्तनमपध्यानम्" -सर्वार्थसि० 007 सू० 21 ___ यहां 'कथं स्यादिति मनसा चिन्तनम्' यह 'पाध्यानम्' पदको व्याख्या है 'परेषां जय पराजय' तथा 'परस्वहरण यह 'मादि' शब्द-द्वारा गृहीत प्रयंका कुछ प्रकटीकरण है और 'परस्वहरणादि' में 'परकलत्रादि' का अपहरण भी शामिल है। (12) "क्षितिसलिलदहनपवनारम्भ विफलं वनस्पतिच्छेदम् / सरणं सारणमपि च प्रमाद चयों प्रभाषन्तं // " -रत्नकरण्ड० 80 "प्रयोजनमन्नरण वृक्षादिछेदन-भूमिकुट्टन-सलिलसेचनाघवद्यकार्य प्रमादाचरितम् / " -सर्वार्थसि० प्र०७ सूत्र 21 यहाँ 'प्रयोजनमन्तरेण' यह पद 'विफलं' पदका समानार्थक है, 'वृक्षादि' पद बनस्पति' के प्राशयको लिये हुए है, 'कुट्टन मेचन' में 'भारम्भ' के प्राशयका एक देश प्रकटीकरण है और 'भादि प्रक्यकार्य' में 'दहन-पवनारम्म' तया 'सरण मारण' का प्राशय संगृहीत है। (13) 'सहतिपरिहरणार्थ चौद्रं पिशितं प्रमादपरिहतये / मर्चच वर्जनीयं जिनचरणो शरणमुपयातः॥"-रत्नकरण्ड 84 "मधु मांसं मद्यं च सदा परिहर्तव्यं प्रसघातानिवृत्तचेतसा / " -सर्वार्षति० म०७ सू० 11 यहाँ 'सातानिवृत्तचेतसा' ये शब्द 'सहतिपरिहरणार्थ' पदके स्पष्ट माशयको लिये हुए है पौर मधु, मांस, परिहर्तव्यं यं पद क्रमशः क्षौद्र, पिशितं, वर्षनीवं पडोके पर्यावपद है।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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