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________________ 334 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश पौर मासमीमांसाकी उक्त दोनों कारिकामोंके प्राशयको लिए हुए है-उसे ही पिता-पुत्रादिके सम्बन्धों-द्वारा उदाहृत किया गया है। बातमीमांसाको उक्त कारिकाके पूर्वार्ध तथा तृतीय चरणमें कही गई नित्यता-अनित्यता-विषयक बातको 'द्रव्यमपि सामान्यापरणया नित्यं, विशेषार्पणयाऽनित्यमिति' इन शब्दों में फलितार्थ रूपसे रक्खा गया है / और युक्त्यनुशासनकी उक्त कारिकामें 'एकार्पणासे'-एक ही अपेक्षासे--विरोध बतलाकर जो यह सुझाया था कि अर्पणाभेदसे विरोध नहीं पाता उसे 'न विरुध्यन्ते अर्पणाभेदात्' जैसे शब्दोंद्वारा प्रदर्शित किया गया है। (5) "द्रव्यपर्याययोरैक्यं तयोरव्यतिरेकतः / परिणामविशेषाश्च शक्तिमच्छक्तिभावतः / / संझा-संख्या-विशेषाचस्वलक्षणविशेषतः। प्रयोजनादिभेदाच तन्नानात्वं न सर्वथा // " -माप्तमीमांसा, का०७१, 32 "यद्यपि कथंचिद् व्यदेपशादिभेदहेतुत्वापेक्षया द्रव्यादन्ये (गुणाः) तथापि तद्व्यनिरकात्तत्परिणामाच नान्यं / " - मर्वार्थसिद्धि प्र० 5 मू०४२ यहां द्रव्य और गुणों (पर्यायो) का अन्यत्व तथा अनन्यत्व ब.लाते हुए, प्रा० पूज्यपादने स्वामी समन्तभद्रकी उक्त दोनो ही कारिकामोंके माशयको अपनाया है पोर ऐसा करते हुए उनके वाक्यमें कितना ही शब्द-साम्य भी मागया है; जैसा कि 'तदव्यतिरेकात' और 'परिणामाच' पदोंके प्रयोगमे प्रकट है। इसके तिवाय, 'कथंचिन' शब्द 'न सर्वथा' का, 'द्रव्यादन्य' पद 'नानात्व' का 'नान्य' शब्द 'ऐक्य' का, 'व्यपदेश' शब्द 'सज्ञा' का वाचक है तथा 'भेदहेत्वपेक्षया' पद् 'भेदात्' 'विशेषात्' पदोंका समानार्थक है और 'पादि' शब्द संज्ञासे भिन्न शेप संख्या-लक्षण-प्रयोजनादि भेदोका मग्राहक है। इस तरह शब्द और अर्थ दोनोंका साम्य पाया जाता है / (6) "उपेक्षा फलमाद्यस्य शेषस्यादानहानधीः / पर्वावाऽज्ञाननाशो वा सर्यस्यास्य स्वगोचरे ।।"-पातमी०१०२ "जस्वभावस्यात्मनः कर्ममलीमसस्य करणालम्बनादर्थनिश्चये प्रीति
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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