________________ साथ सिद्धिपर समन्तभद्रका प्रभाव वस्तुस्थितिके विरुद्ध है; क्योंकि समन्तभद्रकी उपलब्ध पाँच असाधारण कृतियोंमेंसे भाप्तमीमांसा. युक्त्यनुशासन, स्वयंभूस्तोत्र और रत्नकरण्डश्रावकाचार नामकी चार कृतियोंका स्पष्ट प्रभाव पूज्यपादकी 'सर्वार्थसिद्धि' पर पाया जाता है; जैसा कि अन्तःपरीक्षणके द्वारा स्थिर की गई नीचेकी कुछ तुलना परसे प्रकट है। इस तुलनामें रक्खे हुए वाक्योंपरसे विज्ञपाठक सहजहीमें यह जान सकेंगे कि / मा० पूज्यपादने स्वामी समन्तभद्रके प्रतिपादित अर्थको कहीं शब्दानुसरणके कहीं पदानुसरणके, कहीं वाक्यानुसरणके, कहीं उदाहरणके, कहीं पर्यायशब्दप्रयोगके, कही 'मादि' जैग संग्राहकपद-प्रयोगके और कहीं व्याख्यान-विवेचनादिके रूपमें पूर्णतः अथवा अंशतः अपनाया है-ग्रहण किया है / तुलनामें स्वामी समन्तभद्रके वाक्योंको ऊपर और थोपूज्यपादके वाक्योंको नीचे भिन्न टाइपोंमें रख दिया गया है, और माथमे यथावश्यक अपनी कुछ व्याख्या भी दे दी गई है, जिसमे माधारगण पाठक भी हम विषयको ठीक तौरपर अवगत कर सकेंः-- (1) "नित्यं तत्प्रत्यभिज्ञानान्नाकस्मात्तदविच्छिदा। क्षणिक कालभेदात्त बुद्धथसंचरदोपतः // " ___ --प्राप्तमीमांसा, का० 56 "नित्यं तदेवेदमिति प्रनीतेन नित्यमन्यत्प्रतिपत्तिसिद्धेः / " -स्वयम्भूस्नोत्र, का० 43 "तदवेदमिति स्मरणं प्रत्यभिज्ञानम् / तदकम्मान भवतीति योऽस्य हंतुः स सद्भावः ।यनात्मना प्रारहाट यस्तु तेनैवात्मना पुनरपि भावात्तदवेदमिति प्रत्यभिज्ञायत... 'नतस्तद्भावेनाऽव्ययं नित्यमिति निश्चीयते / तत्तु कचिद्वेदितव्यम्। --सर्वार्थसिद्धि, म० 5 मू 31 यहाँ पूज्यपादनं समन्तभद्रके 'तदेवेदमिति' इम प्रत्यभिज्ञानलशगको ज्योंका न्यो अपनाकर इसकी व्याख्या की है. 'नाकस्मात' शब्दोंको ‘अकस्मान्न भवति' रुपमे रक्खा है, 'तदविच्छिदा' के लिये सूत्रानुसार तद्भावेनाऽव्ययं' शब्दोंका प्रयोग किया है और 'प्रत्यभिज्ञान' शब्दको ज्योंका त्यों रहने दिया है / साथ ही 'न नित्यमन्यत्प्रतिपत्तिसिदे:' 'क्षणिक कालभेदात' इन वाक्योंके भावको 'तत्तु कथंचिद्वेदितव्यं' इन शब्दोंके द्वारा संगृहीत और सूचित किया है।