________________ 326 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश उल्लेख इस विषयका न मिलता कि वे 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' इत्यादि मंगलस्तोत्र को किसका बतला रहे हैं। चुनाँचे न्यायाचार्य पं०दरबारीलालजी कोठिया और पं० रामप्रसादजी शास्त्री आदि कुछ विद्वानोंने जब पं० महेन्द्रकुमारजीकी भूलों तथा गलतियोंको पकड़ते हुए, अपने उत्तर-लेखोंके द्वारा विद्यानन्दके कुछ अभ्रान्त उल्लेखोंको सामने रक्खा और यह स्पष्ट करके बतला दिया कि विद्यानन्दने उक्त मंगलस्तोत्रको सूत्रकार उमास्वातिकृत लिखा है और उनके तत्त्वार्थसूत्रका मंगलाचरण बतलाया है, तब उस खींच-तानकी गति रुकी तथा बन्द पड़ी / और इसलिये उक्त मंगलस्तोत्रको पूज्यपादकृत मानकर नथा समन्तभद्रको उसीका मीमांसाकार बतला कर निश्चितरूपमें समन्तभद्रको पूज्यपादके बादका ( उत्तरवर्ती ) विद्वान् बतलानेरूप कल्पनाकी जो इमारत खड़ी की गई थी वह एक दम धराशायी हो गई है / और इसीसे पं० महेन्द्रकुमारजीको यह स्वीकार करने के लिये बाध्य होना पड़ा है कि प्रा० विद्यानन्दने उक्त मंगलश्लोकको सूत्रकार उमास्त्राति-कृत बतलायाहै, जैसा कि अनेकान्तकी पिछली किरण (वर्ष 5 कि० ८.६)में मोक्षमार्गस्य नेतारम्' शीर्षक उनके उत्तर-लेखसे प्रकट है / इस लेखमे उन्होंने अब विद्यानन्दके कथनपर सन्देह व्यक्त किया है और यह मूचित किया है कि विद्यानन्दने अपनी अष्टसहस्रीमें अकलंककी अष्टशतीके 'देवागमेत्यादिमंगलपुरस्सरस्तव' वाक्यका मीधा अर्थ न करके कुछ गलती खाई है और उमीका यह परिणाम है कि वे उक्त मंगलश्लोकको उमास्वातिकी कृति बतला रहे है, अन्यथा उन्हें इसके लिये कोई पूर्वाचार्यपरम्परा प्राप्त नहीं थी। उनके इस लेखका उत्तर न्यायाचार्य पं० दरबारीलालजीने अपने द्वितीय लेखमे दिया है. जो अन्यत्र (अनेकान्त वर्ष५ कि०१०-११में) 'तत्त्वार्थमूत्रका मंगलाचरणा'इस शीर्षकके माथ, प्रकाशित हुआ है / जब पं०महेन्द्रकुमारजी विद्यानन्दके कथन पर सन्देह करने लगे हैं तब वे यह भी असन्दिग्ध रूपमें नहीं कह सकेंगे कि समन्तभद्रने उक्त मंगलस्तोत्रको लेकर ही 'प्राप्तमीमांसा' रची है, क्योंकि उसका पता भी विद्यानन्दके प्राप्तपरीक्षादि ग्रन्थोसे चलता है / चुनांचे वे अब इसपर भी सन्देह करने लगे हैं, जैसा कि उनके निम्न वाक्यसे प्रकट है "यह एक स्वतन्त्र प्रश्न है कि स्वामी समन्तभद्रने 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' श्लोकपर प्राप्तमीमांसा बनाई है या नही / "