________________ सर्वार्थसिद्धिपर समन्तभद्रका प्रभाव 325 कत सूचित किया है और समन्तभद्रको इसी सातस्तोत्रका 'मीमांसाकार' लिखा है, प्रतएव समनाम पूज्यपादके "उत्तरवर्ती ही" है। (2) यदि पूज्यपाद ममन्तभद्रके उसरवर्ती होते तो वे समन्तभद्रकी प्रसाधारण कृतियोंका पौर खामकर 'ससभंगी' का "जोकि ममन्तभद्रको जनपरम्परा को उस समयकी नई देन रही," अपने 'मर्यामिति' मादि किसी अन्य में उपयोग किये बिना न रहने / चकि पूज्यवादके अन्योंमें 'ममन्तभद्रकी अमाघारगा नियोका किमी संगम म्प भी नही पाया जाना, प्रनय समननद ज्यपादके "उनरही है। इन दोनों मानों में प्रथम माधनको कुछ बिगद नया पनविन करने हुए 5. मकुमारी जनमिवालमारकर ( भाग कि..) में प्राना सीख प्रकार काय कामे विद्यानन्दको घामार्गाके 'श्रीमनन्यायवारवादभुतमनिमरतापपोरयानारामाने इत्यादि पद्य * को कर यह वनमा HEET विद्यानन्द इसके द्वारा यह दिन का रहे है कि 'मोक्षमाग ने नगद जम मगनम्तोत्रका ममे सकेन है उसे नन्दाबमास्त्रको ना मन बनलाने समय या उसकी प्रधान भूमिका अपने समय दने रमाइमर लिग उन्हें प्रत्यायाले' पदकी येचिया बगाना डी को जात्रावनाचिनम्नति' तथा म्यादी मन परो भी उनी प्रास्थानारम्भ* Famar को प्रेस के लिये प्रवृत होना पडा था और कोयानकी माजलानजीक उम नोटके अनुरूप थी जिमे उन्होंने मु सीय भाग 'प्रायन { पृ०१५) में अपने बुद्धिपागरके भाग पा था। पान 'प्रोत्यानारम्भकाने पदके प्रथंकी सीसमान मी वा कुष्ठ चल सकती थी जब तक विद्यानन्दका कोई स्पष्ट * मनस्वार्थ शास्वादनुनमामिलनिरिक्ष स्नोद्भवस्य प्रोपामागमकाले मकसमनभिो पात्रकार: कसं यत् / तीपोपमान पितरूपण स्वामिमीमामितं नद विधाम: बसमस्या कथमपि कथितं सत्यवास्यामि // 123 //