________________ 324 जनसाहित्य और इतिहासपर विराद प्रकाश बाद हुए है, और न अनेक कारणोंके वदा / इसे प्रक्षित ही बतलाया जासकता है। परन्तु यह सब कुछ होते हुए भी पौर इन उल्लेखोरी मसत्यताका कोई कारण न बतलाते हुए भी, किसी गलत धारणाके वश, हालमें एक नई विचारधारा उपस्थित की गई है, जिसके जनक है प्रमुख वे० विद्वान् श्रीमान् पं० सुखलालजी संघवी काशी, और उसे गति प्रदान करनेवाले है न्यायाचार्य पं० महेन्टकुमारजी शास्त्री काशी। पं० सुखलालजीने जो बात प्रकलंकग्रन्थत्रयके 'प्राथन में कही उमे ही अपनाकर तथा पुष्ट बनाकर पं० महेन्द्रकुमारजीने न्यायकुमुदचंद्र द्वि० भागकी प्रस्तावना, प्रमेयकमलमातंण्डकी प्रस्तावना और जैनमितान्तभास्कर के 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' गोपंक लेख में प्रकाशित की है। उनाचे 50 मुखमानजी, न्यायकुमुदचन्द्र द्वितीय भागके 'प्रकथन' में, प. महेन्द्रकुमारजीमी कृतिएर सन्तोप व्यक्त करते हा मोर उम पपने मंक्षिप्त लेसका विवाद और गबग भाष्य' बतलाते हुए लिखते है-'प. महेन्द्रकुमार जीने मेरे मशित लेखका विशद और सबल भाष्य करके प्रस्तुत भागको प्रस्तावना (१०२५)में यह अभ्रान्तरूपसे स्थर किया है कि स्वामी समन्तभद्र याद उत्तरवर्ती है। इस तरह प० मुम्ब लालजीको 10 महेन्द्र कुमारजीका पोर. प. महेन्मारजीको पं० मुखलालजीवी रम विपक्षमे पारस्परिक समर्थन और भिनन्दन प्रात है-दोनों ही विद्वान् म विचारमायाको बहाने में नमन है ! ! इस नई विचार धागका लक्ष्य है ममन्तभद्रको पूज्यपादके बादका श्रिमान सिद्ध करना, और उसके प्रधान दो मागन है जो गंशाम निम्न प्रकार है (1) विद्यानन्दवी सामाधामोर प्रमहाके लोग यह 'मयंथा स्पष्ट है कि विद्यानादनं 'मधमार्गस्य नाम गादि मगनतोत्रकी ज्यपान देखो, 'समन्तभद्रका समय और डा० के०ी पाठक नामका (बंद) लेख जो (पहले) १६जून-जुलाई मन् 1934 ने 'जैन जगत मे प्रमागिन पा है. अथवा "Samantabhadra's date and Dr. pathakm ais of B.O.R. I. vol xv Pts. 1-11. P. 7.88