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________________ मर्वार्थसिद्धिपर समन्तभद्रका प्रभाव 'मयामिति' प्राचार्य उमाम्बानि ( गृध्रपिच्छाचार्य ) के तत्वार्थसूत्रको प्रमिद प्राचीन टीका है पौर देवनन्दी अपग्नाम पूज्यपाद माचार्यकी वाम कृति है, जिनका ममप पाम तौरपर ईमाकी पानी पोर विक्रमकी छठी शताब्दी माना जाता है / दिगम्बर ममाजको मान्यतानुमार पा० पुग्यपद स्वामी समन्तमाके बाद हम है, यह बान पट्टानियोंमे ही नहीं किन्तु पनेक गिलालेखोंमे भी जानी जानी है / श्रवणबेन्गोलक शिनाने ना न. 10 (4) में प्राचार्योंके वशादिकका उल्लेख करने हा ममनाक रिचय-पद्यके बाद 'तत:' (तत्पश्चात् ) शन लिखकर यो देवनन्दी प्रथमाभिधानः' इत्यादि पद्योंके द्वारा पूग्यपादका परिमय दिया है. पोरन - 1.8 (25) क मिनामेबमें गमन्तभद्रके मनन्तर पूज्यपादक परिणयका प्रथमपय दिया है उमी में 'वत:' मन्दका प्रयोग किया है, पोर इम नरहर पूज्यपादको समनट बादका विद्वान मूचित किया है। हमके मिवाय, स्वयं पूज्यपारने अपने जनेन्द्र' व्याकरणके निम्न सूत्र ममन्तभद्र के मतका उम्मेख किया है "चतुष्टयं समन्तभदस्य" --5-4-168 इस मूत्रकी मौजूदगी में यह नहीं कहा जा सकता कि समन्तभद्र पूज्यपादके * श्रीपादोदायमराग्यस्ततः मुराधीश्वरपूज्यपादः / पोष्पगुमानियानी बानि मास्वाणि तारनानि / /
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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