________________ 306 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश 'त्रिशिका विज्ञप्तिकारिका' जैसे प्रकरण-ग्रन्थों तककी रचना की है, जिनका उल्लेख पहले किया जाचुका है / यह बौद्धोंकी विज्ञानाद्वैतवादिनी योगाचारशाखाका मत है और प्राचार्य वसुबन्धुके भी बहुत पहलेसे प्रचलित था / इसीसे उन्होंने लिखा है कि 'यह विज्ञप्तिमात्रताकी सिद्धि मैंने अपनी शक्तिके अनुसार की है, पूर्ण रूपसे यह मुझ-जैसोंके द्वारा चिन्तनीय नहीं है, बुद्धगोचर है "विज्ञप्तिमात्रतासिद्धिः स्वशक्तिसदृशी मया / कृतेयं सर्वथा सा तु न चिन्त्या बुद्धगोचरः / / " 'लकावतारसुत्र' नामके प्राचीन बौद्ध ग्रन्थमें, जो वमुबन्धुसे भी बहुत पहले निर्मित हो चुका है और जिसका उल्लेख नागार्जुनके प्रधान शिष्य प्रार्यदेव तक ने किया है * , महामति-द्वारा बुद्ध भगवान्मे जो 108 प्रश्न किये गये है, उनमें भी विज्ञप्तिमात्रताका प्रश्न निम्न प्रकार से पाया जाता है-- "प्रज्ञप्तिमात्रं च कथं ब्रूहि मे वदतांवर / 2-37 / " और आगे ग्रन्थके तीसरे परिवर्तनमें विज्ञप्तिमात्रताके स्वरूप-सम्बन्ध में लिखा है "यदा त्वालम्व्यमर्थ नोपलभते ज्ञान तथा विज्ञप्रिमाजव्यवस्थान भवति विज्ञप्ते ह्याभावाद् प्राहकस्याप्यग्रहणं भवति / तद्ग्रहणानप्रवर्तते ज्ञानं विकल्पसंशब्दितं / " ___ इमसे बौद्ध का यह सिद्धान्न बहुन प्राचीन मालूम होता है / प्राश्चर्य नहीं जो "सहोपलम्भानियमादभेदी नीलतद्धिया:" यह वाक्य भी पुराना ही हो और उसे धर्मकीर्तिने अपनाया हो / अत: प्राप्तमीमांसाके उत्त. वाक्यपरमे ममन्तभद्रको धर्मकीतिक बादका विद्वान् करार देना नितान्त भ्रमात्मक है / यदि धर्मकीतिको ही विज्ञप्तिमात्रता सिद्धान्तका ईजाद करनेवाला माना जायगा तो वसुबन्धु प्रादि पुरातन प्राचार्योंको भी धर्मकीतिके बादका विद्वान् मानना होगा, जो पाठक महाशयको भी इष्ट नहीं होसकता और न इतिहाससे ही किसी तरहपर सिद्ध किया जासकता है / और इसलिये यह दूमरा हेतु भी प्रसिद्धादि दोषों * देखो, पूर्वोल्लेखित 'हिस्टरी प्रॉफ़ मिडियावल स्कूल प्राफ़ इण्डियन लॉजिक' पृ० 72, ( या हिस्टरी माफ़ इण्डियन लॉजिक पृ० 243, 261)