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________________ 16 समन्तभद्रका समय और डाक्टर के० बी० पाठक डॉक्टर के० बी० पाठक बी० 10, पी० एच० डी० नं 'समन्तभद्रके समयपर एक लेख पूनाके 'ऐन्नल्म माफ दि भाण्डारकर प्रोरियण्टल रिसर्च इन्स्टिटयूट' नामक अंग्रेजी पत्रकी ११वी जिल्द (Vol XI. Pt. II P. 14)) में प्रकागित कराया है और उसके द्वारा यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि स्वामी ममन्तभद्र ईमाकी आठवी शताब्दीके पूर्वार्द्ध में हए है: जब कि जैन समाज में उनका ममय प्रामनौरपर दूसरी शताब्दी माना जाता है और पुगतत्त्वके कई विद्वानोंने उसका समर्थन किया है। यह लेख, कुछ अर्मा हुषा, मेरे मित्र पं0 नाथूरामजी प्रेमी बम्बईकी कृपासे मुझे देखनको मिला. देखनेपर बहुन कुछ सदोष तथा भ्रममूलक जान पड़ा और अन्नको जांचनेपर निश्चय हो गया कि पाठकजीने जो निर्णय दिया है वह ठीक तथा युक्तियुक्त नहीं है। अतः प्राज पाठकजीके उक्त लेख। उत्पन्न होनेवाले भ्रमको दूर करने और यथार्थ वस्तुस्थितिका बोध कराने के लिए ही यह लेख लिखा जाता है। पाठकजी का हेतुवाद "समन्तभद्रका समय निर्णय करना प्रासान है, यदि हम उनके 'युक्त यनुशासन' और उनकी 'मासमीमांसा' का सावधानी के साथ अध्ययन करें, इस
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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