________________ 266 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश शताब्दियोंके उल्लेख है,उनसे पहले पाठसौ वर्षके भीतरका एक भी उल्लेख नहीं है और यह समय इतना तुच्छ नहीं हो सकता जिसकी कुछ पर्वाह न की जाय; बल्कि महाभाष्यके अस्तित्व, प्रचार और उल्लेखकी इस समयमें ही अधिक संभावना पाई जाती है और यही उनके लिये ज्यादा उपयुक्त जान पड़ता है। प्रतः पहले उल्लेखोंके साथ पिछले उल्लेखोंकी शृखला और संगति ठीक बिठलाने के लिये इस बातकी खास जरूरत है कि १०वीसे ३री शताब्दी पीछे तकके प्राचीन जनसाहित्यको खूब टटोला जाय-उस समयका कोई भी ग्रंथ प्रथवा शिलालेख देखनेसे बाकी न रक्खा जाय-, ऐसा होने पर इन पिछले उल्लेखोंको शृखला पौर संगति ठीक बैठ सकेगी और तब वे और भी ज्यादा वजनदार हो जाएंगे। साथ ही, इस हूँ ढ-खोजसे समन्तभद्रके दूसरे भी कुछ ऐसे ग्रन्थों तथा जीवनवृत्तान्तोंका पता चलनेकी प्राशा की जाती है जो उनके परिचयमें निबद्ध नहीं हो सके और जिनके मालूम होनेपर ममन्तभद्रके इतिहासका और भी ज्यादा उद्धार होना संभव है / प्राशा है कि अब पुरातत्त्वके प्रेमी और समन्तभद्रके इतिहासका उद्धार करने की इच्छा रखनेवाले विद्वान् जरूरइस हूँढ-खोजके लिये अच्छा यल करेंगे, और इस तरह शीघ्र ही कुछ विवादग्रस्त प्रश्नोंको हल करने में समर्थ हो सकेंगे। + खो, उन उल्लेखोंके वे फुटनोट भी जिनमें उनके कामोंका समय दिया