________________ गन्धहस्ति महाभाष्यकी खोज 263 है और उसके द्वारा सभी प्राप्तोंकी परीक्षा कर डाली है / वसुनन्दि-वृत्तिकी प्रस्तावनाके वे वाक्य इस प्रकार है ___ "...........स्वभक्तिसंभारप्रेक्षापूर्वकारित्वलक्षणप्रयोजनवद्गुणस्तवं कर्तु कामः श्रीमत्समन्तभद्राचार्यः सर्वज्ञ प्रत्यक्षीकृत्यैवमाचष्टे-हे भट्टारक संस्तवो नाम माहात्म्यस्याधिक्यकथनं / त्वदीयं च माहात्म्यमतीन्द्रियं मम प्रत्यक्षागोचरं / अतः कथं मया स्तूयसे / / अत प्राह भगवान ननु भो वत्स यथान्ये देवागमादिहतोर्मम माहात्म्यमवबुध्य स्तवं कुर्वन्ति तथा त्वं किमिति न कुरुपे / / अत आह-अस्माद्ध तोर्न महान भवान मां प्रति / व्यभिचारित्वादम्य हेतोः / इति व्यभिचारं दर्शयति-" इस तरहपर, लघुसमन्तभद्रके उक्त स्पष्ट कथनका प्राचीन साहित्यपरसे कोई ममर्थन होता हुआ मालूम नहीं होता / बहुत संभव है कि उन्होंने अष्टमहली पौर प्रासपरीक्षाके उक्त वचनोपरसे ही परम्पग-कथनके महाग्मे वह ननीजा निकाला हो, और यह भी संभव है कि किसी दूसरे ग्रन्थ के स्पष्टोल्लेखिके प्राधारपर. जो अभी तक उपलब्ध नहीं हुअा. वे गंधहस्ति-महाभाप्यके विषयमें वैमा उल्लेख करने अथवा नतीजा निकालने के लिये समथं हा हों। दोनों ही हालतोंमें प्राचीन माहित्यपरमे उक्त कथनके समर्थन और यथेष्ट निर्णयके लिये विशेष अनुसंधान की जरूरत बाकी रहती है. इसके लिये विद्वानोंको प्रयत्न करना चाहिए। ये ही सब उल्लेख है जो अभीतक इम अथके विषय मे हमें उपलब्ध हुए है। पौर प्रत्येक उल्लेखपरमे जो बात जितने अंगोंमें पाई जाती है उसपर यथाशक्ति ऊपर विचार किया जा चुका है / मेरी रायमें, इन मब उल्लेखोपग्मे इतना जरूर मालूम होता है कि 'गंधहम्ति-महाभाष्य नामका कोई ग्रंथ जरूर लिम्बा गया है, उसे 'सामन्तभद्र-महाभाष्य' भी कहते थे और खालिम 'गंभहस्नि' नामसे भी उसका उल्लेखित होना मभव है। परन्तु वह किस ग्रन्थपर लिम्वा गयाकर्मप्राभृत कि भाप्यने भिन्न है या भिन्न--यह सभी सुनिश्चतरूपसे नहीं * समन्तभद्रका 'कर्मप्राभत' सिद्धान्तपर लिखा हा भाष्य भी उपलब्ध नहीं है / यदि वह सामने होता तो गधहस्ति महाभाप्यके विशेष निर्णयमें उससे बहुत कुछ सहायता मिल सकती थी।