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________________ गन्धहस्ति महाभाष्यकी खोज 296 है और प्रश्नका उत्तर देते हुए बीचमें मंगलाचरणका करना अप्रस्तुत जान पड़ता है; दूसरे वस्तुनिर्देशको भी मंगल माना गया है जिसका उत्तरद्वारा स्वतःविधान हो जाता है और इसलिये ऐसी परिस्थितिमें पृथक् रूपसे मंगलाचरणका किया जाना कुछ संगत मालूम नहीं होता / भूमिकाके वे वाक्य इस प्रकार है “सर्वार्थसिद्धिग्रंथारंभे 'मोक्षमार्गस्य नेतारमिति' श्लोको वतते स तु सूत्रकृता भगवदुमास्यातिनव विरचित इति श्रुतसागराचार्यस्याभिमतमिति तत्प्रणीतश्रुतमागर्याख्यवृत्तितः म्पटमवगम्यते / तथापि श्रीमत्पूज्यपादाचार्येणाव्याख्यातत्वादिदं श्लोकनिर्माणं न सूत्रकृतः किंतु सर्वार्थमिद्धिकृत एवेति निर्विवादम / नथा एतेषा सूत्राणं द्वैपायक-प्रश्नोपयुत्तरत्वेन विरचनं तैरेवाङ्गीक्रियते तथा च उत्तरे वक्तव्ये मध्ये मगलस्याप्रस्तुतत्वाद्वस्तुनिर्देशम्यापि मंगलवेनाङ्गीकृतत्वाबोपरितन: सिद्धान्त एव दाव्य मापनीतीत्यूह्य सुधीभिः / / " पं०वंशीधरजी, अष्टमहनीके स्वमपादित संस्करण में, ग्रथकर्तामोंका परिचय देते हुए, लिम्बने हैं कि ममन्तभद्रने गधहस्तिमहाभाष्यको रचनाकरते हुए उसकी पादिमें इस पद्यके द्वाग प्राप्नका म्नवन किया है और फिर उसकी परीक्षाके लिये 'प्राप्तमीमामां' ग्रंथकी रचना की है। यथा "भगवता मनन्तभद्रगा गन्धहम्निमहाभाप्यनामानं तत्त्वार्थापरि टीकाग्रन्थं चतुरशीतिमहमानुष्टुभमानं विरचयन / तदादी मोक्षमागस्य नेनारम' इत्यादिनेकन पानामः स्तुतः / तत्परीक्षगाथं च ततांग्रे पंचदशाधिकशनपाराप्तमीमांसाग्रन्धाभ्यधायि।" / कुछ विद्वानोका कहना है कि 'गजवानिक' टोकामें प्रकलंकदेवने इस पद्यको नही दिया- इसमे दिये हुए प्राप्त विशेषणोंकी चर्चा तक भी नहीं की--पोर न विद्यानंदने ही अपनी 'लोकवानिक टीकामें इसे उद्धृत किया है, ये ही सर्वार्थ सिद्धि के बाद की दो प्राचीन टीवाएँ उपलब्ध है जिनमे यह पद्य नहीं पाया जाता. और इससे यह मालूम होता है कि इन प्राचीन टीकाकारोंने इस पद्यको मूलग्रन्थ ( तत्वार्थसूत्र ) का प्रग नहीं माना / अन्यथा, ऐसे महत्वशाली पद्यको छोड़कर खण्डरूपमें अन्यके उपस्थित करनेकी कोई वजह नहीं थी जिस पर 'प्रासमीमामा' जैसे महान ग्रन्थोंकी रचना हुई हो।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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