________________ गन्धहस्ति महाभाष्यकी खोज 287 शास्त्रसे 'निःश्रेयस शास्त्र' का अभिप्राय है / इन विशेषणोंको लिये हुए पासके स्तवनका प्रसिद्ध श्लोक निम्न प्रकार है मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् / ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये / / प्राप्तके इस स्तोत्रको लेकर, प्रष्टसहस्रीके कर्ता श्रीविद्यानन्दाचार्यने इसपर 'प्राप्तपरीक्षा' नामका एक ग्रन्थ लिखा है और स्वयं उसकी टीका भी की है। इस ग्रन्थमें परीक्षाद्वारा पहन्तदेवको ही इन विशेषरणोंम विशिष्ट और वंदनीय ठहराते हुए, 120 वें नंबर के पद्यमे, 'इति संदेपतान्वयः' यह वाक्य दिया है पोर इमकी टीकामें लिखा है “इति संक्षेपत: शास्त्रादी परमेष्ठिगुणस्नात्रभ्य मुनिपुङ्गवैविधीयमानस्यान्वयः संप्रदायान्यवच्छेदलक्षणः पदार्थघटनालक्षणो वा लक्षणीयः प्रपंचतम्तदन्वयम्याक्षेपसमाधानलक्षणम्य श्रीमत्स्वामीममंतभद्रदेवागमाख्यानमीमांसाया प्रकाशनान...!" __इस सब क्थनमे इतना तो प्रायः स्पष्ट हो जाता है कि समन्तभद्रका देवागम नामक प्राप्तमीमामा ग्रन्थ 'माक्षमागम्य नेतारं' नामक पद्यमे कहे हए आसके स्वरूपको लेकर निम्बा गया है; परन्तु यह पद्य कौनमे निःश्रेयम (मोक्ष) शास्त्रका पद्य है और उसका कर्ता कौन है, यह बात अभी तक स्पष्ट नहीं हुई। विद्यानंदाचार्य, प्राप्तपरीक्षाको ममाप्त करते हुए, इस विषय में लिखते हैं श्रीमत्तत्वाथेशास्त्राद्भतसलिल निधेरिद्धरत्नाद्भवस्य, प्रोत्थानारंभकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैः कृतं यन / स्तोत्रं तीर्थोपमानं प्रथित पथुपथं म्वामिमीमांसितं नन , विद्यानंद: स्वशक्त्या कथमपि कथितं सत्यवाव याथसिद्धयं / / 12 / / हम पद्यसे मिर्फ इतना पता चलता है कि उक्त तीर्थोपमान स्तोत्र, जिसकी स्वामी ममंतभद्रने मीमांसा और विद्यानन्दने परीक्षा की.तत्त्वार्थशास्त्ररूपी अद्भत (r) "शास्त्रारंभेभिष्टुतस्याप्तस्य मोक्षमार्गप्रणेतृतया कर्मभूभृद्भत्तृतया विश्वतत्त्वानां ज्ञातृतया च भगवदहत्सवंशस्यवान्ययोगव्यवच्छेदेन व्यवस्थापनपरपरीक्षेयं विहिता।"