________________ 286 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश ष्टिमापूरयांचक्रिरे।" इस वाक्य-द्वारा, प्राचार्योंके विशेषणोंको छोड़कर, यह खासतौर पर सूचित किया गया है कि स्वामी समन्तभद्रने उमास्वातिके 'तत्त्वार्थाधिगममोक्षशास्त्र' पर 'गन्धहस्ति' नामका एक महाभाष्य लिखा है, और उसकी रचना करते हुए उन्होंने उसमें परम प्राप्तके गुणातिशयकी परीक्षाक अवसरपर 'देवागम' नामके प्रवचनतीर्थकी सृष्टि की है। यपि इस उल्लेखसे गंधहस्तिमहाभाष्यकी श्लोकसंख्याका कोई हाल मालूम नहीं होता और न यही पाया जाता है कि देवागम (प्राप्तमीमांसा) उसका मंगलाचरण है, परन्तु यह बात बिलकुल स्पष्ट मालूम होती है कि समन्तभद्रका गंधहस्ति महाभाष्य उमास्वातिके 'तत्त्वार्थसूत्र' पर लिखा गया है और 'देवागम' भी उसीका एक प्रकरण है / जहाँ तक मै समझता हूँ यही इस विषयका पहला स्पछोल्लेख है जो अभीतक उपलब्ध हुमा है / परन्तु यह उल्लेख किस प्राधारपर अवलम्बित है ऐमा कुछ मालूम नही होता / विक्रमको बारहवीं शताब्दीसे पहलेके जनसाहित्यमें तो गंधहस्तिमहाभाष्यका कोई नाम भी अभीतक देखनेमे नहीं पाया और न जिस अष्टसहस्री' टीका पर यह टिप्पणी लिखी गई है उममे ही इस विषयका कोई स्पष्ट विधान पाया जाता है / अष्टसहस्रीको प्रस्तावनासे मिर्फ़ इतना मालूम होता है कि किसी निःश्रेयस शास्त्रके प्रादिम किये हुए प्राप्तके स्तवनको लेकर उसके प्राशयका ममर्थन या स्पष्टीकरण करने के लिये यह प्राप्तमीमामा लिखी गई है। वह नि:श्रयसशास्त्र कोनमा और उसका वह स्तवन क्या है, इस बातकी पयांलोचना करने पर प्रष्टसहस्रीके अन्तिम भागमे इतना पता चलता है कि जिस शास्त्र के प्रारम्भमें प्राप्तका स्तवन 'मोक्षमार्गप्रणेता, कर्मभूभृद्भना और विश्वतत्त्वानां ज्ञाता' रूपमे किया गया है उसी * "तदेवेदं निःश्रेयमशास्त्रस्यादो तग्निबन्धनतया मगलायतया च मुनिभिः संस्तुतेन निरतिशयगुरणेन भगवताप्तेन श्रयोमार्गमात्महितमिच्छनां सम्यग्मिध्योपदेशार्थविशेषप्रतिपत्यर्थमाप्तमीमांसां विदधानाः श्रद्धागुणज्ञताभ्यां प्रवक्तमनसः कस्माद् देवागमादिविभूतितोऽह महानाभिष्टुत इति स्फुटं पृष्ठा इब स्वामिसमन्तभद्राचार्याः प्राहुः-"