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________________ ~~~-rrrrrrrr गन्धहस्ति महाकाव्यकी खोज 283 इस उल्लेखसे सिर्फ 'गंधहस्ति' नामके एक ग्रन्थका पता चलता है परन्तु यह मालूम नहीं होता कि वह मूल ग्रन्थ है या टीका, दिगम्बर है या श्वेताम्बर और उसके कर्ताका क्या नाम है / हो सकता है कि, इसमें 'गंधहस्ति' से समन्तभद्रके गंधहस्तिमहाभाष्यका ही अभिप्राय हो, जैसाकि पं. जवाहरलाल शास्त्रीने ग्रन्थकी भाषाटीकामें सूचित किया है; परन्तु वह श्वेताम्वरोंका कोई ग्रन्थ भी हो सकता है जिसकी इस प्रकारके उल्लेख-अवसरपर अधिक संभावना पाई जाती है। क्योंकि दोनों ही सम्प्रदायोंमें एक नामके अनेक ग्रन्थ होते रहे हैंऔर नामोंकी यह परस्पर समानता हिन्दुओं तथा बौद्धों तकमे पाई जाती है। अतः इम नाममात्रके उल्लेखसे किसी विशेषताकी उपलब्धि नहीं होती। (7) 'न्यायदीपका' * में प्राचार्य धर्मभूपरणने अनेक स्थानों पर प्राप्तमीमांमा' के कई पद्योंको उद्धत किया है; परन्तु एक जगह सर्वज्ञकी सिद्धि करते हुए, वे उसके सूक्ष्मान्तरितदरार्थाः' नामक पद्यको निम्न गक्यके माथ उद्धृत करते है "तदुक्तं स्यामिभिर्महाभाष्यम्यादावाप्तमीमांसाप्रस्तावे-" इस वाक्यमे इतना पता चलता है कि महाभाष्यको आदिमें 'प्राप्तमीमांसा' नामका भी एक प्रस्ताव है-प्रकरण है-और ऐसा होना कोई अस्वाभाविक नहीं है; एक ग्रन्थकार अपनी किमी कृतिको उपयोगा समझकर अनेक ग्रन्थोंमें भी उद्धृत कर सकता है / परन्तु इसमे यह मालूम नहीं होता कि वह महाभाष्य उमास्वातिके तत्वार्थमूत्रका ही भाष्य है। वह कर्मप्राभूत नामके सिद्धान्तशास्त्रका भी भाष्य हो सकता है और उममे भी 'माप्तमीमांसा' नामके एक प्रकरणका होना कोई प्रसंभव नहीं कहा जा सकता / इसके सिवाय ' प्राप्तमीमांसाप्रस्तावे' पदमें पाये हुए 'मातमीमांसा' शब्दोंका वाच्य यदि समन्तभद्रका संपूर्ण प्राप्तमीमांसा' नामका दशपरिच्छेदात्मक ग्रन्थ माना जाय तो उक्त पदसे यह भी मालूम नहीं होता कि वह प्राप्तमीमांसा ग्रन्थ उस भाष्यका मंगलाचरण है, बल्कि वह उसका एक प्रकरण जान पडता है। प्रस्ताव या प्रकरण होना और बात है और * यह ग्रन्य शक सं० 1307 ( वि० सं० 1442 )में उनकर समास हुमा है और इसके रचयिता धर्मभूषण 'पभिनव धर्मभूषण' कहलाते हैं।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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