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________________ www 282 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश भद्रं ) समन्तभद्र के द्वारा बिना उपदेशके प्रथम जाने हुए महाभाष्यको 'सामन्तभद्र महाभाष्य' कहते हैं, ऐसा समझना चाहिये; और इससे यह ध्वनि निकलती है कि समन्तभद्रका महाभाष्य उनका स्वोपज्ञ भाष्य है- उन्हींके किसी ग्रन्थपर रचा हुमा भाष्य है। अन्यथा, इसका उल्लेख टः प्रोक्त' सूत्रकी टीका में किया जाता, जहाँ 'प्रोक्त' तथा 'व्याख्यात' अर्थमें इन्हीं प्रत्ययोंसे बने हुए रूपोंके उदाहरण दिये हैं और उनमें सामन्तभद्र' भी एक उदाहरण है परन्तु उसके साथमें 'महाभाष्यं' पद नहीं है क्योंकि दूसरेके ग्रंथ पर रचे हुए भाष्यका अथवा यों कहिये कि उस ग्रन्थके अर्थका प्रथम ज्ञान भाष्यकारको नहीं होता बल्कि मूल ग्रन्थकारको होता है / परन्तु यहां पर हमे इस चर्चामें अधिक जानेकी ज़रूरत नहीं है / मैं इस उल्लेख परमे सिर्फ इतना ही बतलाना चाहता हूँ कि इसमें समन्तभद्रके महाभाष्यका उल्लेख है और उसे 'गन्धहस्ति' नाम न देकर 'सामन्तभद्र महाभाष्य के नामसे ही उल्लेखित किया गया है / परन्तु इस उल्लेखसे यह मालूम नहीं होता कि वह भाष्य कौनसे ग्रन्थपर लिखा गया है / उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्रकी तरह वह कर्मप्राभूत सिद्धान्तपर या अपन ही किसी ग्रंथपर लिखा हुआ भाप्य भी हो सकता है। .ऐमी हालतमे, महाभाष्यके निर्माण का कुछ पता चलने के सिवाय, इस उल्लेखसे और किसी विशेषताकी उपलब्धि नहीं होती। (6 ) स्याद्वादमजरी नामके श्वेताम्बर ग्रंथमें एक स्थानपर 'गंधहस्ति' आदि ग्रन्थोंके हवाले से अवयव और प्रदेशके भेदका निम्न प्रकारसे उल्लेख किया है "यद्यप्यवयवप्रदेशयोगन्धहस्त्यादिपु भेदोऽस्ति तथापि नात्र सूक्ष्मेक्षिका चिन्त्या / " * यह उसी तीसरे अध्यायके प्रथम पादका 166 वा सूत्र है; और प्रकियासंग्रहमें इसका क्रमिक नं० 743 दिया है। ॐ यह हेमचन्द्राचार्य-विरचित 'अन्ययोगव्यवच्छेद-सात्रिशिका'की टीका है जिसे मल्लिषेणसूरिने शक सं० 1214 (वि० सं० 1346 ) में बनाकर समाप्त किया है।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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