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________________ ... गन्धहस्ति महाभाध्यकी खोज 281 .. "तृतीयान्तादुपज्ञाते प्रथमतोहाते यथायोग अणादयो भवन्ति / / अर्हता प्रथमतो ज्ञातं आहेत प्रवचन। सामन्तभद्रं महाभाष्यमित्यादि / / " ___ यहाँ तृतीयान्तसे उपज्ञात अर्थमें प्रणादि प्रत्ययोंके होनेसे जो रूप होते हैं उनके दो उदाहरण दिये गये है-एक 'पाहत-प्रवचन' और दूसरा सामन्तभद्र महाभाष्य' / साथ ही, 'उपज्ञात'का अर्थ 'प्रथमतो ज्ञात'-बिना उपदेशके प्रथमजाना हुप्रा-किया है / अमरकोशमें भी 'प्राय ज्ञान'को उपशा' लिखा है / इस प्रर्थकी दृष्टिमे अहंन्तके द्वारा प्रथम जाने हुए प्रवचनको जिस प्रकार 'पाहंत प्रवचन' कहते है उसी प्रकार ( समन्तभरण प्रथमतो विनोपदेशेनज्ञातं सामन्त साथ टीकाका नाम भी दिया है। इससे ये तीनों टीकाकार एक ही व्यक्ति मालूम होते हैं और मुनिचद्रके शिष्य जान पड़ते हैं। केशववर्णीने गोम्मटसारकी कनड़ी टीका शक स० 1281 ( वि० सं० 1416 ) मे बनाकर समाप्त की है, पौर मुनिचंद्र विक्रमकी 13 वी 14 वी शताब्दीके विद्वान थे। उनके अस्तित्व समयका एक उल्लेख सौंदत्तिके शिलालेखमे शक सं० 1151 (वि० सं० 1286) का और दूसरा श्रवणबेलगोलके 137 ( 347 ) नंबरके शिलालेख में शक सं० 1200 ( वि० मं० 1335 ) का पाया जाता है। इस लिए ये अभय चंद्रमूरि विक्रमकी प्राय 14 वीं शताब्दीके विद्वान् मालूम होते हैं। बहुत संभव है कि वे प्रभयमूरि मैद्धान्तिक भी ये ही अभयचंद्र हों जो 'श्रुत मुनि के गास्त्रगुरु थे और जिन्हें श्रुतमुनिके भावसंग्रह' की प्रशस्तिमें शब्दागम, परमागम और तांगमके पूर्ण जानकार ( विद्वान् ) लिखा है। उनका ममय भी यही पाया जाता है; क्योंकि थुनमुनिके अरगुवनगुरु और गुरुभाई बालचंद्र मुनिने शक सं० 1165 (वि० सं० 1330 ) में 'द्रव्यसंग्रह' सूत्र पर एक टीका लिखी है ( देखो ‘कर्णाटककविचरिने' ) / परन्तु श्रुतमुनिके दीक्षागुरु प्रभयचन्द्र सैद्धान्तिक इन अभयचंद्रसूरिसे भिन्न जान पड़ते हैं, क्योंकि श्रवणबेल्गोलके शि० लेख नं० 41 प्रौर 105 में उन्हें माघनंदीका शिष्य लिखा है / लेकिन समय उनका भी विक्रमकी 13 वी 14 वी शताब्दी है। प्रभयचंद्र नामके दूसरे कुछ विद्वानोंका अस्तित्व विकमकी 16 वी मोर 17 वीं शताब्दियोंमें पाया जाता है। परन्तु वे इस प्रक्रियासंग्रह' के कर्ता मालूम नहीं होते।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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