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________________ 280 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश ____ इससे वार्तिक-भाष्योंका +परिमाण पहले भाष्योंसे प्रायः कुछ बढ़ जाता है। जैसे सर्वार्थ सिद्धिसे राजवातिकका और राजवातिकसे श्लोकवातिकका परिमारण बढ़ा हुपा है / ऐसी हालतमें उक्त तत्त्वार्थसूत्रपर समंतभद्रका 84 या 96 हजार श्लोकसंख्यावाला भाष्य यदि पहलेसे मौजूद था तो अकलंकदेव और विद्यानंदके वार्तिक-भाष्योंका अलग अलग परिमाण उससे जरूर कुछ बढ़ जाना चाहिये था; परन्तु बढ़ना तो दूर रहा वह उल्टा उससे कई गुणा कम है। इससे यह नतीजा निकलता है कि या तो समन्तभद्रने उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्र पर वैसा कोई भाष्य नहीं लिखा-उन्होंने सिद्धान्तग्रन्थपर जो भाष्य लिखा है वही 'गंधहस्ति महाभाष्य' कहलाता होगा-और या लिखा है तो वह अकलंकदेव तथा विद्यानंदसे पहले ही नष्ट हो चुका था, उन्हें उपलब्ध नहीं हुआ। ( 5 ) शाकटायन व्याकरणके 'उपज्ञाते.' सूत्रकी टीकामें टीकाकार श्रीप्रभयचन्द्रसूरि लिखते है-- + वार्तिकभाष्योंसे भिन्न दूसरे प्रकारके भाष्यों अथवा टीकामोंका परिमाण भी बढ़ जाता है, ऐसा अभिप्राय नहीं है / वह चाहे जितना कम भी हो सकता है। यह तीसरे अध्यायके प्रथम पादका 182 वा सूत्र है और अभयचंद्रसूरिके मुद्रित 'प्रक्रियासंग्रह' में इसका क्रमिक नं० 746 दिया है। देखो, कोल्हापुरके 'जैनेन्द्रमुद्रणालय' में छपा हुमा सन् 1907 का संस्करण / / ये अभयचन्द्रसूरि वे ही अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती मालूम होते है जो केशववीके गुरु तथा 'गोम्मटसार'की 'मन्दप्रबोधिका' टीकाके कर्ता थे, और 'लघीयस्त्रय'के टीकाकार भी ये ही जान पड़ते है / 'लघीयस्त्रय' की टीकामें टीकाकारने अपनेको मुनिचंद्रका शिष्य प्रकट किया है और मंगलाचरणमें मुनिपंद्रको भी नमस्कार किया है; 'मंदप्रबोषिका' टीकामें भी 'मुनि'को नमस्कार किया गया है और शाकटायन व्याकरणको इस प्रक्रियासंग्रह' टीकामें भी मुनीन्द्र'को नमस्कार पाया जाता है और वह 'मुनीन्दु' (= मुनिचंद्र ) का पाठान्तर भी हो सकता है / साथ ही, इन तीनों टीकामों के मंगलाचरणोंकी शैली भी एक पाई जाती है-प्रत्येकमें अपने गुरुके सिवाय, मूलग्रंयकर्ता तथा जिनेश्वर (जिनापीय ) को भी नमस्कार किया गया है और टीका करजेकी प्रतिज्ञाके
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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