________________ LAAAAAmiasinindianan गन्धहस्ती महाभाष्यकी खोज पीछे लिखे जानेसे कहीं पर 48 हजार लिखी गई हो और उसीके माधारपर 48 हजारका गलत उल्लेख कर दिया गया हो-या 66 हजार हो अथवा 68 हजार वगैरह कुछ और ही हो; और यह भी संभव है कि उक्त वाक्यमें जो मंख्या दी गई है वही ठीक न हो-वह किसी गलतीसे 84 हजार था 48 हजार प्रादिकी जगह लिखी गई है हो / परन्तु इन सब बातोंके लिये विशेष अनुसंधान तथा खोजकी जरूरत है और तभी कोई निश्चित बात कही जा सकती है। हाँ, उक्त वाक्योंमें दी हुई महाभाष्यकी संख्या और किसी एक श्रुतावतारमें दी हुई समन्तभद्रके सिद्धान्तागमभाष्यकी संख्या दोनों यदि सत्य साबित हो तो यह जरूर कहा जा सकता है कि ममन्तभद्रका गंधहस्तिमहाभाष्य उनके सिद्धान्तागमभाष्य ( कर्मप्राभूत-टीका ) मे भिन्न है, और वह उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्रका भाष्य ही सकता है। (3) श्रीचामुण्डायने, अपने कर्णाटक मापा-निबद्ध त्रिषष्ठिलक्षरणपुराणके निम्न पद्यमें, समन्तभद्र के तत्त्वार्यभाष्यका उल्लेख किया है "अभिमत्तमग्गिरे तत्त्वार्थभाष्यमं तर्क शास्त्रमं वरदु वची-। विभवदिनिलेगेमंद समन्तभद्रदेवर समानरेंवरमोतारे // 5 // " यह पुराण शक मं० 600 ( वि० 1035 , में बनकर समाप्त हुआ है / इममें ममन्तभद्रके जिस तत्वायंभाप्यका उल्लेख है उसे 'तकंशास्त्र' बतलाया गया है, जिसमे वह नर्कश लीकी प्रधानताको लिये हुए जान पड़ता है, उसकी सख्यादिका यहां कोई निर्देश नहीं है / (4) उमास्वानिके 'नत्वार्थमूत्र' पर 'राजवार्तिक' और 'श्लोकवार्तिक' नामके दो भाष्य उपलब्ध हैं जो क्रमश: अकलंकदेव तथा विद्यानंदाचार्यके बनाये हुए है / ये वातिकके ढंगमे लिखे गये हैं और 'वार्तिक' ही कहलाते हैं / वार्तिकोंमें उक्त, अनुक्त और दुरुक्त-कहे हए, बिना कहे हुए और अन्यथा कहे हुएतीनों प्रकारके प्रयोंकी चिन्ता, विचारणा अथवा अभिव्यक्ति हुप्रा करती है / जैसा कि श्रीहेमचन्द्राचायंप्रतिपादित 'वातिक'के निम्न लक्षणसे प्रकट है उक्तानुक्तदुरुक्तार्थचिन्ताकारि तु वार्तिकम / / | A rulc which explains what is said or but imperfectly said and supplies omissions. (V. S. Apte's dictionary)