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जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश
उल्लेख 'रायल एशियाटिक सोसाइटी' की रिपोर्टके भाधारपर किया गया है मौर उक्त सोसायटीमें ही उसका अस्तित्व बतलाया गया है। परंतु मेरे देखनेमें अभी तक यह ग्रन्थ नहीं भाया और न उक्त सोसाइटीकी वह रिपोर्ट ही देखने को मिल सकी है +; इसलिए इस विषय में में अधिक कुछ भी कहना नहीं चाहता । हाँ, इतना जरूर कह सकता हूं कि स्वामी समंतभद्रका बनाया हुआ यदि कोई व्याकरण ग्रन्थ उपलब्ध होजाय तो वह जैनियोंके लिये एक बड़े ही गौरवकी वस्तु होगी । श्रीपूज्यपाद प्राचार्यने अपने 'जैनेन्द्र' व्याकरणमे 'चतुष्टयं समंतभद्रस्य' इस सूत्र के द्वारा समन्तभद्रके मतका उल्लेख भी किया है, इसमें समन्तach किसी व्याकरणका उपलब्ध होना कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है ।
६ प्रमाण पदार्थ
मूडबिद्रीके 'पडुवस्तिभंडार' की सूची से मालूम होता है कि वहाँपर 'प्रमापदार्थ' नामका एक संस्कृत ग्रन्थ समन्तभद्राचार्यका बनाया हुधा मौजूद है श्रौर उसकी श्लोकसंख्या १००० है* । साथ ही उसके विषयमे यह भी लिखा है कि वह अधूरा है। मालूम नही, ग्रन्थकी यह श्लोकसंख्या उसकी किसी टीकाको साथमें लेकर है या मूलकाही इतना परिमारण है । यदि अपूर्ण मूलका ही इतना परिमाण है तब तो यह कहना चाहिये कि समन्तभद्रके उपलब्ध मूलग्रन्थोंमें यह सबसे बड़ा ग्रन्थ है, और न्यायविषयक होनेसे बड़ा ही महत्व रखता है । यह भी मालूम नही कि यह ग्रन्थ किस प्रकारका प्रधूरा है— इसके कुछ पत्र नष्ट हो गये हैं या ग्रन्थकार इसे पूरा ही नहीं कर सके है। बिना दबे इन सब बानोके विषय में कुछ भी नही कहा जा सकता। हां, इतना जरूर में कहना चाहता हूँ + रिपोर्ट आदिको देखकर श्रावश्यक सूचनाएँ देने के लिये कई बार अपने एक मित्र, मेम्बर रॉयल एशियाटिक सोसायटी कलकत्ता, को लिखा गया प्रौर प्रार्थनाएं की गई परन्तु वे अपनी किन्हीं परिस्थितियोंके वश श्रावश्यक सूचनाएँ देनेमें असमर्थ रहे ।
● यह सूची प्राराके 'जैन सिद्धान्त भवन' में मौजूद है ।
8 इस ग्रंथके विषयमें प्रावश्यक बातोंको मालूम करने के लिए मूढविद्रीके पं० लोकनाथजी शास्त्रीको दो पत्र दिये गये। एक पत्रके उत्तरमें उन्होंने ग्रंथको