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________________ समन्तभद्रके प्रन्थोंका संक्षिप्त परिचय २६५ होता है । ग्रंथका विषय उसके नामसे ही प्रकट है और वह बड़ा ही उपयोगी विषय है। श्रीजिनसेनाचार्यने समंतभद्रके इस प्रवचनको भी "जीवसिद्धिविधायीह कृनयुक्त्यनुशासनम् । वचः समन्तभद्रस्य वीरस्येव विज़म्मते ॥" इस वाक्यके द्वारा महावीर भगवानके वचनोंके समान प्रकाशमान बतलाया है। इससे पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि यह ग्रंथ कितने अधिक महत्त्वका होगा। दुर्भाग्यसे यह ग्रंथ अभी तक उपलब्ध नहीं हुप्रा । मालूम नहीं किस भंडारमें बन्द पड़ा हमा अपना जीवन शेष कर रहा है अथवा शेष कर चुका है। इसके शीघ्र अनुसंधानकी बड़ी जरूरत है। ७ तत्वानुशासन _ 'दिगम्बरनग्रंथकर्ता और उनके प्रथ' नामकी सूची में दिए हुए समन्तभद्रके ग्रंथोंमें 'तत्त्वानुशामन का भी एक नाम है। श्वेताम्बर कान्फरेमद्वाग प्रकाशित 'जैनग्रंथावली' में भी 'तन्वानुशामन' को समन्तभद्रका बनाया हुप्रा लिखा है, और माथ ही यह भी प्रकट किया है कि उसका उल्लेख मुरतके उन मेठ भगवानदास कल्यागादामजीकी प्राइवेट रिपोर्ट में है जो पिटर्मन माहबकी नौकरीमें थे। और भी कुछ विद्वानोंने. ममन्तभद्रका परिचय देते हुए, उनके ग्रंथोंमें 'तन्वानुशासन का भी नाम दिया है। इस तरह पर इम ग्रन्थके अस्तित्वका कुछ पता चलता है। परन्तु यह ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ। अनेक प्रसिद्ध भंडारोंकी मूचियां देखने पर भी यह मालूम नहीं हो सका कि यह ग्रन्थ किम जगह मौजूद है और न इसके विषयमें अभी तक किमी शास्त्रवाक्यादिपरसे यह ही पूरी तौर पर निश्चय किया जा सका है कि समंतभद्रने वास्तवमें इस नामका कोई ग्रंथ बनाया है, फिर भी यह खयाल जरूर होता है कि ममन्तभद्रका ऐसा कोई ग्रंथ होना चाहिये। खोज करनेमे इतना पता जरूर चलता है कि रामसेनके उस 'तत्वानुशासन से भिन्न, जो माणिकचन्द्रग्रंथमालामें 'नागसेन' + 'नागसेन' नाम गलतीसे दिया गया है। वास्तवमे वह ग्रन्थ नागसेनके शिष्य 'रामसेन' का बनाया हुमा है; भोर यह बात मैंने एक लेखद्वारा सिद्ध की थी जो जुलाई सन् १९२० के जैनहितैषीमें प्रकाशित हुमा है ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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