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२६४ जनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश पौर उपयोगी बनी हैं । इसका विशेष परिचय 'समन्तभद्रकी स्तुतिविद्या' नामक निबन्धसे जाना जासकता है ।
५ रत्नकरंड उपासकाध्ययन इसे 'रत्नकरंडश्रावकाचार' तथा 'समीचीन-धर्मशास्त्र' भी कहते है । उपलब्ध ग्रंथों में, श्रावकाचार विषयका, यह सबमे प्रधान, प्राचीन, उत्तम और सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है। श्रीवादिराजसूरिने इसे 'अक्षय्यसुखावह और प्रभाचन्द्रने 'अखिल सागारमार्गको प्रकाशित करनेवाला निर्मल सूर्य' लिखा है । इसका विशेष परिचय और इसके पद्योंकी जाँच मादि-विषयक विस्तृत लेख माणिकचन्दग्रंथमालामें प्रकाशित रत्नकरण्ड-श्रावकाचारकी प्रस्तावनामें तथा वीरसेवामन्दिरसे हाल में प्रकाशित 'समीचीन-धर्मशास्त्र' की प्रस्तावनामें दिया गया है। यहाँपर मैं सिर्फ इतनाही बतला देना चाहता हूँ कि इस ग्रन्थपर अभीतक केवल एक ही संस्कृतटीका उपलब्ध हुई है, जो प्रभाचन्द्राचार्यकी बनाई हुई है और वह प्रायः साधारण है ।हां. 'रत्नकरंडकविषमपदव्याख्यान'नामका एक संस्कृक टिप्पण भी इस ग्रन्थपर मिलता है, जिसके कर्ताका नाम उमपरसे मालूम नहीं हो सका। यह टिप्पण पाराके जैनमिद्धान्तभवनमें मौजूद है । कनडी भाषामें भी इम ग्रन्थकी कुछ टीकाएँ उपलब्ध हैं परन्तु उनके रचयिताओं आदिका कुछ पता नही चल सका । तामिल भाषाका 'अरु गलछप्पु' ( रत्नकरडक ) ग्रन्थ, जिसकी पच-मस्या १८० है, इम अन्यको सामने रखकर बनाया गया मालूम होता है और कुछ अपवादोंको छोड़कर इमीका प्राय: भावानुवाद अथवा सारांश जान पड़ता है । परन्तु वह कब बना पोर किमने बनाया, इसका कोई पता नहीं चलता और न उमे तामिल-भाषाकी टीका ही कह सकते है।
६ जोवसिद्धि इस ग्रन्थका पता श्रीजिनसेनाचार्यप्रणीत 'हरिवंशपुराण के उम पद्यमे चलता है जो 'जीवसिद्धिविधायीह कृतयुक्त्यनुशासन' जैसे पदोंसे प्रारम्भ __ यह राय मैंने इस ग्रंथके उम अंग्रेजी अनुवादपरमे कायम की है जो सन् १९२३-२४ के अंग्रेजी जैनगजटके कई प्रकोंमें the Casket of Gems नामसे प्रकाशित हुमा है।
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