________________
जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश
२ युक्त्यनुशासन
समन्तभद्रका यह ग्रंथ भी बड़ा ही महत्वपूर्ण तथा अपूर्व है, और इसका भी प्रत्येक पद बहुत ही अर्थगौरवको लिए हुए है। इसमें, स्तोत्रप्रणालीसे, कुल ६४ पद्यों द्वारा, स्वमत और परमतोंके गुणदोषोंका, सूत्ररूपसे, बड़ा ही मार्मिक वर्णन दिया है, और प्रत्येक विषयका निरूपण, बड़ी ही खूबी के साथ, प्रबल युक्तियोंद्वारा किया गया है। यह ग्रंथ जिज्ञासुनोंके लिये हितान्वेषणके उपायस्वरूप है और इसी मुख्य उद्देश्यको लेकर लिखा गया है; जैसा कि ६३वीं कारिकाके उत्तरार्धमे प्रकट है। । श्रीजिनसेनाचार्यने इसे महावीर भगवानके वचनोंके तुल्य लिखा है । इस ग्रंथपर अभीतक श्रीविद्यानंदाचार्यकी बनाई हुई एक ही सुन्दर संस्कृतटीका उपलब्ध हुई है और वह 'माणिकचन्द - ग्रंथमाला' में प्रकाशित भी हो चुकी है। इस टीकाके निम्न प्रस्तावना - वाक्यसे मालूम होता है कि यह ग्रंथ प्राप्तमीमांसा के बादका बना हुआ है
-
“श्रीमत्समन्तभद्रस्वामिभिराप्तमामासायामन्ययोगव्यवच्छदाद्व्यवस्थापितेन भगवता श्रीमतार्हतान्त्यतीर्थंकर परमदेवेन मां परीक्ष्य किं चिकीर्षवो भवंत इति ते पृष्टा इव प्राहुः ।”
ग्रंथका विशेष परिचय समन्तभद्रका युक्त्यशासन' लेखमें दिया गया है ।
·
२६२
३ स्वयम्भूस्तोत्र
इसे 'बृहत्स्वयंभू स्तोत्र' और 'समन्तभद्रस्तोत्र' + भी कहते हैं। यह ग्रंथ भी * सन् १९०५ में प्रकाशित 'मनातनजैनग्रंथमाला' के प्रथम गुच्छकमें इस ग्रंथ पद्योंकी संख्या ६५ दी है, परन्तु यह भूल है। उसमें ४० वें नम्बर पर जो 'स्तोत्रं युक्त्यनुशासने' नामका पद्य दिया है वह टीकाकार का पद्य है, मूलग्रन्थका नहीं । और मा० ग्रन्थमालामें प्रकाशित इस ग्रन्थकं पद्यों पर गलत नम्बर पड़ जानेसे ६५ संख्या मालूम होती है ।
+ किमु न्यायान्याय प्रकृत-गुरणदोषज्ञ मनसां हितान्वेषोपायस्तव गुग्ण-कथासंग-गदितः ।
+ 'जैनसिद्धान्त भवन धारा' में इस ग्रंथकी कितनी ही ऐसी प्रतियां कनड़ी अक्षरोंमें मौजूद है जिनपर ग्रंथका नाम 'समंतभद्रस्तोत्र' लिखा है ।