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________________ समन्तभद्रके प्रन्थोंका संक्षिप्त परिचय २६१ ही है - अर्थात् दोनों प्राठ प्राठ हजार श्लोकोंवाली हैं । परन्तु यह सब कुछ होते हुए भी - ऐसी ऐसी विशालकाय तथा समर्थ टीका-टिप्परिगयों की उपस्थितिमें भी - 'देवागम' अभी तक विद्वानोंके लिये दूरूह और दुर्बोधसा बना हुआ है । इससे पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि इस ग्रन्थके ११४ श्लोक कितने अधिक महत्त्व, गांभीर्य तथा गूढार्थको लिये हुए हैं; और इसलिये, श्रीवीरनंदी श्राचार्यने 'निर्मलवृत्तमौक्तिका हारयष्टि' की तरह और नरेंद्रसेनाचार्यने 'मनुष्यत्व' के समान समन्तभद्रकी भारतीको जो 'दुर्लभ' बतलाया है उसमें जरा भी प्रत्युक्ति नहीं है । वास्तवमें इस ग्रंथ की प्रत्येक कारिकाका प्रत्येक पद 'सूत्र' है और वह बहुत ही जाँचतोलकर रक्खा गया है— उसका एक भी अक्षर व्यर्थ नहीं है। यही वजह है कि समन्तभद्र इस छोटेसे कूजेमे संपूर्ण मतमतान्तरोंके रहस्यरूपी समुद्रको भर सके हैं और इसलिये उसको अधिगत करनेके लिये गहरे अध्ययन, गहरे मनन और विस्तीर्ण हृदयकी खास जरूरत है । हिन्दीमें भी इस ग्रन्थपर पंडित जयचन्दरायजीको बनाई हुई एक टीका मिलती है जो प्राय: साधारण है । सबसे पहले यही टीका मुझे उपलब्ध हुई थी और इसी परसे मैंने इस ग्रन्थका कुछ प्राथमिक परिचय प्राप्त किया था । उस वक्त तक यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ था, और इसलिये मैंने बड़े प्रेमके साथ, उक्त टीकामहिन, इस ग्रंथकी प्रतिलिपि स्वयं अपने हाथमे उतारी थी। वह प्रतिलिपि अभी तक मेरे पुस्तकालय में सुरक्षित है। उस वक्तसे बराबर में इस मूल ग्रंथको देखता प्रा रहा हूँ और मुझे यह बड़ा ही प्रिय मालूम होता है । इस ग्रंथपर कनड़ी, तामिलादि भाषाश्रोंमें भी कितने ही टीका-टिप्पण. विवरण और भाष्य ग्रन्थ होंगे परन्तु उनका कोई हाल मुझे मालूम नहीं है; इसीलिये यहांपर उनका कुछ भी परिचय नहीं दिया जा सका । + इस विषयमे, श्वेताम्बर साघु मुनि जिनविजयजी भी लिखते हैं ''यह देखने में ११४ श्लोकोंका एक छोटासा ग्रंथ मालूम होता है, पर इसका गांभीर्य इतना है कि, इस पर सैकड़ों-हजारों श्लोकोंवाले बड़े बड़े गहन भाष्य-विवरण प्रादि लिखे जाने पर भी विद्वानोंको यह दुर्गम्यसा दिखाई देता है ।" - जैनहितैषी भाग १४, अंक ६ ।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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